…तो तीन दिन में होगी ‘मंगल’ की यात्रा
लेजर प्रणोदन से संचालित लाइटक्राफ्ट की योजना बना रहे वैज्ञानिकअंतरिक्ष पर्यटन ही नहीं, संसाधनों के लिए चांद और लघु ग्रहों पर नजर
…तो तीन दिन में होगी ‘मंगल’ की यात्रा
बेंगलूरु. धरती पर मौजूद सीमित संसाधनों के खत्म होने की स्थिति में लाल ग्रह यानी मंगल पर बस्ती बसाने की तो हम सोचते हैं लेकिन पृथ्वी से लगभग 40 करोड़ किमी दूर लाल ग्रह तक जाने-आने में 2 साल के लंबे सफर की कल्पना डरा देती है। अब वैज्ञानिक आने वाले दिनों में ग्रहों के सफर को दो शहरों के बीच की यात्रा जैसा सुगम बनाने की कल्पना कर रहे हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के.सिवन ने यहां शनिवार को 11 वें एलएम कत्रे स्मृति व्याख्यान के दौरान कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान की सोच सिर्फ अंतरिक्ष में जाने-आने, रॉकेट और स्पेस क्राफ्ट सीमित नहीं रही। अब ग्रहों तक के सफर को बेंगलूरु और चेन्नई के बीच की यात्रा जैसा सुगम और तीव्र बनाने की राह निकाली जा रही है।
विमान और रॉकेट के मिश्रित स्वरूप का होगा उपयोग
आज चंद्रमा पर पहुंचने में चार दिन का समय लगता है तो मंगल ग्रह पर पहुंचने में एक साल का समय लग जाता है। अगर किसी अंतरिक्ष यात्री को मंगल ग्रह पर भेजा जाए तो उसे जाने-आने में ही दो साल का वक्त लग जाएगा। सस्ती, बेहतर और तीव्र सेवाओं की मांग के इस दौर में यह समय काफी ज्यादा है। लेकिन, क्या मंगल ग्रह की यात्रा कम समय में संभव है? सिवन ने कहा कि कुछ भी असंभव नहीं है। हमने रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट के क्षेत्र में काफी कुछ किया लेकिन आने वाला समय ‘लाइटक्राफ्टÓ का होगा, जो आज के विमान और रॉकेट का मिश्रित स्वरूप होगा। यह लाइटक्राफ्ट किसी तरल या ठोस ईंधन से नहीं चलेगा और इसके लिए क्रायोजेनिक या सेमी क्रायोजेनिक इंजन नहीं चाहिए। इसकी प्रणोदन प्रणाली बिल्कुल अलग होगी और वह ‘लेजर प्रणोदन प्रणालीÓ से संचालित होगी। लेजर प्रणोदन प्रणाली से संचालित लाइटक्राफ्ट से महज तीन दिनों में ही मंगल ग्रह की यात्रा होगी। उन्होंने कहा कि यह आसान नहीं होगा। कहना आसान होता है, करना मुश्किल। लेकिन यह ऐसी भी कल्पना नहीं है जो असंभव है।
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि आज अंतरिक्ष पर्यटन की बातें हो रही हैं जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को 100 किमी की ऊंचाई पर भेजकर पुन: धरती पर वापस लाया जाएगा। अंतरिक्ष पर्यटन पर जाने वाला व्यक्ति वहां के महौल से रोमांचित होगा। लेकिन, क्या सिर्फ अंतरिक्ष तक पहुंचने और धरती तक वापस आने तक ही अंतरिक्ष कार्यक्रम सीमित रहेंगे। उन्होंने कहा कि धरती के संसाधन खत्म होने पर दूसरे ग्रहों से संसाधन हासिल करने के प्रयास शुरू हो चुके हैं और भारत इसमें पीछे नहीं रहेगा। वह वैश्विक स्तर पर चल रहे ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होगा। चांद को हीलियम-3 के एक बड़े भंडार के रूप में देखा जा रहा है। हीलियम-3 ऊर्जा का असीमित स्रोत तो है ही, उससे कचरा भी उत्सर्जित नहीं होगा।
इसी तरह लघु ग्रहों के धरती के करीब आने पर वहां अपना यान उतारकर खनन करने की भी योजनाएं बन रही हैं। माना जाता है कि लघु ग्रहों पर हीरे का भंडार है। वहीं कई लघु ग्रहों पर प्रचुर प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं। दूसरे आकाशीय पिंडों से संसाधनों को हासिल करने का यह प्रयास सिर्फ सरकारी एजेंसियां तक ही सीमित नहीं रहेगा। इसमें निजी क्षेत्र भी आ रहे हैं और वैश्विक स्तर पर साझेदारियां भी हो रही हैं। ऐसे प्रयासों में भारत शामिल होगा। उन्होंने इसरो के साथ-साथ वायुसेना और एयरोनॉटिकल एजेंसियों के बीच मजबूत साझेदारी और बेहतर तालमेल के साथ काम करने पर जोर दिया।
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