कीट और बीमारियां से मुक्ति
जरबेरा की किस्म विकसित करने वाली टीम के प्रमुख व आइआइएचआर (Institute of Horticultural Research ) में फूलों की खेती और औषधीय पौधा विभाग के प्रधान वैज्ञानिक सी. अश्वथ ने बताया कि स्वदेशी किस्मों को विकसित करने से वित्तीय सहित कई लाभ होंगे। फूलों की किस्मों का आयात जोखिम भरा है क्योंकि कई कीट और बीमारियां उनके साथ देश में प्रवेश करते हैं। इस समस्या से भी निजात मिलेगी।
20 से 30 किस्में हॉलैंड की
अश्वथ ने बताया कि वर्तमान में देश में पैदा होने वाले जरबेरा की सभी 20-30 किस्में हॉलैंड (Holland) से हैं। 20 रुपए की रॉयल्टी के साथ किसान प्रति पौधा करीब 40 रुपए का भुगतान करते हैं। पौधों पर किसान प्रति हेक्टेयर करीब 19 लाख रुपए खर्च कर रहे हैं। एक हेक्टेयर के लिए करीब 66,000 पौधों की जरूरत पड़ती है। स्वदेशी किस्म के इतने पौधे सात लाख रुपए में उपलब्ध होंगे।
अब प्रति फूल की लागत 10 से 20 पैसे
हॉलैंड किस्मों पर किसान को प्रति फूल तीन रुपए मिलते हैं। लेकिन, एक फूल उगाने पर किसान डेढ़ रुपए खर्च करता है। स्वदेशी किस्म उगाने पर प्रति फूल की लागत 10 से 20 पैसे ही होगी। किसानों (Farmers) की आय बढऩे के साथ उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी। फूलों की सजावट और अधिक किफायती होगी।
जून से होगी खेती
देसी किस्मों में से अर्का अश्व, अर्का नेसारा, अर्का व्हाइट और अर्का पिंक पॉलीहाउस (Polyhouse) की खेती के लिए उपयुक्त हैं। अरका कृषिका और अर्का रेड किस्मों को खुले खेतों में उगाया जा सकता है। इसे जून तक किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा। इन किस्मों में कुछ कीटों के प्रति सहिष्णुता है, जो कीटनाशकों का उपयोग कम करेगा।
यह भी जानें
– जरबेरा को ट्रांसवल डेजी या अफ्रीकन डेजी के नाम से भी जाना जाता है।
– भारत (India) में जरबेरा की खेती महाराष्ट्र, उत्तरांचल, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक और गुजरात में होती है।