पहले एस्ट्रोसैट मिशन में मिली सफलता को दूसरे मिशन में आगे बढ़ाने के लिए कौन-कौन से वैज्ञानिक पे-लोड होने चाहिए और मिशन का मुख्य उद्देश्य क्या होना चाहिए इसपर इसरो में चर्चा शुरू हो चुकी है। इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक एम.अन्नादुरै ने हाल ही में कहा कि दूसरा एस्ट्रोसैट मिशन ऐसा होना चाहिए जो पहले मिशन के अध्ययनों को आगे बढ़ाए। वैज्ञानिकों का मानना है कि एस्ट्रोसैट-2 अगली पीढ़ी का विज्ञान एवं इंजीनियरिंग मिशन होना चाहिए जिसमें गुरुत्वकर्षण सदृश तरंगों की पहचान,गामा किरणों के धु्रवीकरण, इंफ्रारेड दूरबीन अथवा बहुतरंगदैध्र्य क्षमता और बड़े दूरबीन आदि हो।
पूर्व इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने भीकहा था कि अगले मिशन के मुख्य उद्देश्य विज्ञान-आधारित होना चाहिए। इसके लिए इसरो ने एक पैनल भी गठित किया है। पहली अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट 28 सितम्बर 2015 को कक्षा में स्थापित हुई थी। यह वेधशाला वर्णक्रम के विभिन्न हिस्सों में ब्रह्मांड का अध्ययन करने में सर्वश्रेष्ठ साबित हुई है। यह 650 किमी की ऊंचाई से पृथ्वी का चक्कर लगाती है। इसके प्रमुख उपकरण है 37.5 सेंटीमीटर व्यास दर्पण वाला अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप जो जोड़े में है।
अन्य उपकरणों में है एक्स-रे टेलीस्कोप, प्रोपोर्शनकल काउंटर और चाज्र्ड पार्टिकल मॉनिटर। इनके अलावा है सीजेडटीआई अर्थात कैडमियम जिंक टेल्युराइड इमेजर जो उच्च ऊर्जा की एक्स किरणों को 10-150 केईवी के ऊर्जा रेंज में पकड़ सकता है। नई टेक्नोलॉजी से यह सभी उपकरण अपनी प्रकार के विदेशी उपग्रहों में लगे उपकरणों के सापेक्ष बेहद संवेदनशील हैं। पहली वेधशाला के आंकड़ों से कई शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।