दरअसल, तकनीकी उन्नति के साथ उपग्रहों का आकार और वजन घटता जा रहा है। फिलहाल जो रॉकेट उपलब्ध हैं (पीएसएलवी या जीएसएलवी) उनमें बड़े उपग्रहों के साथ छोटे उपग्रहों को समयोजित करना पड़ता है। लेकिन, अगर लघु उपग्रहों के लिए छोटे रॉकेट हों तो उनका प्रक्षेपण किफायती दर पर बिना विलंब के हो सकेगा। छोटे उपग्रहों को किसी बड़े उपग्रह के साथ समायोजित होने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। इस लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) की प्रक्षेपण लागत भी पीएसएलवी की तुलना में 10 गुणा कम होगी। विश्व की सभी अंतरिक्ष एजेंसियां सस्ते प्रक्षेपण का प्रयास कर रही हैं। सभी की कोशिश है कि कैसे कम लागत में पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचा जाए। इसरो का यह प्रयास भी कम लागत में अंतरिक्ष पहुंचने में काफी प्रभावी साबित होगा। इसरो अधिकारियों का कहना है कि इस रॉकेट को पूरी तरह ठोस ईंधन से छोडऩे की योजना है। इसरो अधिकारियों के मुताबिक विश्वभर में बड़े पैमाने पर छोटे उपग्रह ही तैयार किए जा रहे हैं। इसलिए अगर बाजार पर पकड़ बनानी है तो छोटे उपग्रहों की लांचिंग महत्वपूर्ण होगी। अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2017 से 2026 के बीच लगभग विश्व भर में 6200 लघु उपग्रह छोड़े जाएंगे और इनका बाजार 8.9 अरब डॉलर से बढ़कर 30 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।