उन्होंने कहा कि आज करोना काल में यह बातें और भी प्रासंगिक हो गई हैं। करोना की पहली लहर जब लगभग समाप्ति की ओर थी, तब हमारे अंदर अतिआत्मविश्वास और कुछ लापरवाही देखने में आई।
नतीजतन दूसरी लहर के भयानक प्रभाव हम सबके सामने आए। अभी इस नाजुक परिस्थिति से निपटने के लिए मास्क, टीका, दवाई, स्वच्छता और सामाजिक दूरी जैसे परहेज तो जरूरी हैं ही, मन से पॉजिटिव रहना भी जरूरी है, आंतरिक मजबूती भी बहुत जरूरी है।