मुख्य न्यायाधीयर अभय श्रीनिवास ओक व न्यायाधीश सूरज गोविंदराज की पीठ ने परिवहन कर्मचारियों की हड़ताल के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार, निगमों और कर्मचारी संघों को नोटिस जारी करते हुए यह बात कही। अदालत ने कहा कि हमें उम्मीद और विश्वास है कि कर्मचारी संघों की मांगों पर जोर दिए बिना चारों परिवहन निगमों के कर्मचारी बसों के परिचालन के लिए आगे आएंगे ताकि आम लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसे समय में जब राज्य में अचानक कोरोना के मामलों में वृद्धि के साथ मौतों की संख्या बढ़ी है, चारों निगमों की बस सेवा बाधित होने से आम लोग प्रभावित हुए हैं। सरकारी परिवहन निगम लोगों के आवागमन के लिए सबसे सस्ता साधन है। चाहे लोगों को ड्यूटी पर जाना हो अथवा टीका लगवाने, बसों की सेवा बहुत जरुरी हे। अदालत ने कहा कि मांगों की वैधता पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर रही है। इस तरह की हड़ताल से लोगों के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं। अगर मांग वाजिब हों तो भी संभवत: यह हड़ताल के लिए सबसे खराब समय है। अदालत ने कहा कि कर्मचारी संघ आगे आते हैं तो ग्रीष्मावकाश होने के बावजूद अदालत सोमवार व मंगलवार को विशेष सुनवाई करेगी।
अदालत ने कहा कि सरकार की ओर से दायर की गई शपथ जानकारी में कहा गया है कि हड़ताल के कारण चारों निगमों में ९० प्रतिशत बसों का परिचालन प्रभावित हुआ है।
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवडगी ने अदालत को बताया कि ९८ प्रतिशत कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण सरकार पहले ही एस्मा लगा चुकी है और हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए हैं। सरकार की अपील पर श्रम अदालत हड़ताल को अवैध करार दे चुका है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को बताया कि ड्यूटी पर आने के कारण एक परिवहन निगम कर्मी की हमले में मौत हो गई।
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता प्रभुलिंग के. नवडगी ने अदालत को बताया कि ९८ प्रतिशत कर्मचारियों के हड़ताल पर चले जाने के कारण सरकार पहले ही एस्मा लगा चुकी है और हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए हैं। सरकार की अपील पर श्रम अदालत हड़ताल को अवैध करार दे चुका है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत को बताया कि ड्यूटी पर आने के कारण एक परिवहन निगम कर्मी की हमले में मौत हो गई।