मुनि ने कहा कि आज से 300 वर्ष पूर्व हुए आचार्य जयल के गुण कीर्तन, महिमा गान करते हुए मुनि राम ने 100 वर्ष पूर्व इस जाप की रचना की थी। यह जाप महान चमत्कारिक एवं अत्यंत प्रभावशाली, कल्पवृक्ष के समान मनोवांछित फल देने वाला सिद्ध हुआ है। जाप में महावीर बिलवाडिया, रविंद्र चोरडिय़ा आदि ने सेवा प्रदान की। तपस्वी हेमवती हुक्मीचंद कांकरिया, उषा भंडारी सहित 25 तपस्वियों ने प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
प्रभु नाम स्मरण का महत्वपूर्ण प्रभाव
बेंगलूरु. शांतिनगर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ में आचार्य महेंंद्र सागर सूरी ने कहा कि प्रभु की भक्ति स्वरुप नाम स्मरण भी आत्मा को अजर अमर पद की भेंट दे सकता है। उन्होंने कहा कि हम जहां रह रहे हैं उस भरत क्षेत्र में अनंत चौबीसियां हुई है, उन सभी का अपनी आत्मा पर उपकार है, फिर भी इस अवसर्पिणी काल में हुए चौबीस ही तीर्थंकर भगवंतों का हम सब पर अति विशेष उपकार है।
इसलिए हम सभी को नित्य ही उनके नाम स्मरण पूर्वक उनकी स्तुति स्तवना जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आदर और बहुमान पूर्वक जिनेश्वर वीतरागी भगवंतों का नाम लेने से आत्मा को सम्यग दर्शगुण की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह शेर की एक दहाड़ सुनकर ही जंंगल के सारे पशु एक पल में पलायन कर जाते हैं, ठीक उसी तरह प्रभु के नाम स्मरण करने के प्रभाव मात्र से उस आत्मा के पाप भी शिथिल होकर भाग जाते हैं।