उन्होंने कहा कि सिर्फ जन्म से जैन होना काफी नहीं है। कर्म से जैन होना भी जरूरी है। जन्म से जैन होना सरल है, कर्म से जैन होना बहुत कठिन है। उन्होंने कहा कि जर्मनी के जाने-माने विद्वान हर्मन येकोबी जन्म से जैन नहीं थे लेकिन वे कर्म से जैन बन गए थे। उन पर जैन धर्म के सिद्धांतों का गहरा प्रभाव पड़ा था।
येकोबी ने जैन आगम कल्पसूत्र का जर्मनी और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर जैन संस्कृति की बेहतरीन सेवा की। उन्होंने 1400 वर्ष पुराने भगवान रामचंद्र के प्राकृत काव्य पउम चरियं का अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
पउम चरियं जैन रामायण है, जो आचार्य विमलसूरी की अमर रचना है। उन्होंने कहा कि आज के युवा धर्म,राष्ट्र और संस्कृति के योगदान से लगभग अछूते हैं। आचार्य ने मकर संक्रांति पर्व का महत्व समझाते हुए कहा कि यह पर्व भारतीय संस्कृति और विभिन्न धर्मों को आपस में जोडऩे वाला पर्व है। उन्होंने लोगों से पतंग उड़ाने के लिए साधारण धागे का उपयोग करने की अपील की।
इस अवसर पर संघ के अध्यक्ष अशोक कुमार दांतेवाडिय़ा, न्यासी हंसराज पगारिया, नवयुवक मंडल अध्यक्ष प्रवीण कुमार लुंकड़ आदि मौजूद थे।