मजबूत स्थानीय नेतृत्व कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत है। डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय का नेतृत्व करते हैं वहीं, सिद्धरामय्या कुरुबा समुदाय के बड़े नेता हैं। सिद्धरामय्या अहिंदा समीकरण (अल्पसंख्यक, हिंदू, दलित और पिछड़ा) को साधते हुए अहिंदा प्लस की कोशिश कर रहे हैं।
मल्लिकार्जन खरगे का कांग्रेस अध्यक्ष होना भी इस बार कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक पक्ष है। वे राज्य में दलित मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं।
स्थानीय मुद्दे भाजपा को परेशान कर रही है। भाजपा नेतृत्व अथवा विकास के मुद्दे का राष्ट्रीय स्तर पर जवाब देना चाहती है। वहीं, कांग्रेस स्थानीय नेतृत्व और स्थानीय मुद्दों को हवा देकर भाजपा के सामने चुनौती पेश कर रही है।
सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ 40 फीसदी कमीशन सरकार या भ्रष्टाचार अभियान में कांग्रेस भाजपा पर हावी रही।
गारंटी कार्यक्रम भी कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक कदम साबित हो सकते हैं। सभी घरों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, हर परिवार की महिला मुखिया को 2 हजार रुपए मासिक सहायता, बीपीएल परिवार के प्रत्येक सदस्य को 10 किलो चावल मुफ्त, और हर स्नातक को 3 हजार या 1500 रुपए प्रति माह बेरोजगारी भत्ता एक बड़ी घोषणा साबित हो सकती है।
-गुटबाजी और अंदरुनी कलह कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। खासकर प्रदेश अध्यक्ष डीकेे शिवकुमार और सिद्धरामय्या के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान पार्टी के लिए एक बड़ी समस्या है। अन्य वरिष्ठ नेता जैसे डॉ जी. परमेश्वर, एच के पाटिल, के एच मुनियप्पा भी खुश नहीं हैं।
लिंगायत समुदाय के बीच अपने वोट आधार का विस्तार करना अभी भी कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। यह कांग्रेस की दूसरी बड़ी कमजोरी है।
पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इतना मजबूत नहीं है जो किसी बगावत की स्थिति में सभी को एकजुट रख सके।
कांग्रेस के सामने एक चुनौती अल्पसंख्यक मतदाताओं को एकजुट रखने की भी होगी।
मोदी फैक्टर और टिकट वितरण से पैदा संभावित असंतोष से कांग्रेस कैसे निपटेगी यह भी एक बड़ा सवाल है।
ओल्ड मैसूरु में जद-एस अपनी खोई जमीन को हासिल कर रहा है जो कि कांग्रेस के लिए एक सिरदर्द साबित हो सकता है।