बेंगलूरु जैसे हाईटेक शहर में कोरोनो वायरस के मरीजों को एम्बुलेंस के लिए दो तीन घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। इसी शहर में एम्बुंलेंस नहीं मिलने के कारण एक व्यक्ति की घर के सामने ही तड़प-तड़प कर मौत हुई है। मरीजों को कोरोना वायरस की चिकित्सा के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। बैड नहीं होने के बहाने अस्पताल मरीजों को भर्ती करने से इनकार कर रहे हैं। क्या यही इस राज्य सरकार की सफलता है?
उन्होंने कहा कि हाल में मुख्यमंत्री ने बेंगलूरु शहर में कोरोना वायरस के नियंत्रण का दायित्व तीन मंत्रियों के बीच विभाजित किया है। यह कार्रवाई कोरोना वायरस नियंत्रित करने के लिए नहीं बल्कि मंत्रियों के बीच आपसी संघर्ष रोकने का प्रयास है। तीनों मंत्री कोरोना वायरस के संक्रमण से लडऩे के बदले राजनीतिक वर्चस्व की जंग में व्यस्त हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण को गंभीरता से नहीं लिया है।
इस विभाग का मुखिया कौन होगा, इसी बात को लेकर उलझी इस सरकार ने बहुमूल्य समय गंवा दिया है। अब हालात बेकाबू होने के बाद इस सरकार की तंद्रा टूटी है। इससे पहले केवल आंकड़ों के खेल से सरकार प्रशासनिक कुशलता दिखाने का पूरा प्रयास कर रही थी। लेकिन अब संक्रमितों और मृतकों के असली आंकड़ों ने सरकार की पोल खोल दी है।उन्होंने कहा की हालात गंभीर होने के बाद भी केंद्र सरकार से कर्नाटक को कितनी सहायता मिलेगी पीएम केयर्स फंड से कर्नाटक को क्या मिलेगा यह सवाल पूछने की हिम्मत बी.एस.येडियूरप्पा समेत किसी भाजपा नेता में नहीं है।