लिंगायतों ने सरकार के फैसले के समर्थन में जुलूस निकाल कर खुशियां मनाई लेकिन वीरशैव लिंगायतों ने इसका विरोध किया है। भाजपा और जद ध नेताओं ने भी सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे चुनाव में फायदे के लिए किया गया फैसला बताया है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने दो टूक शब्दों में कहा हैकि सिफारिश को लेकर कोई भ्रम नहीं था।
बेंगलूरु में इस फैसले के बाद लिंगायत समर्थकों ने चालुक्य सर्कल पर एकत्र होकर खुशियां मनाईऔर इसे अपने लंबे संघर्षका नतीजा बताया। लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाया और मिठाई खिला कर खुशियां जताईं। शहर में कईऔर स्थानों से भी इसी तरह के आयोजनों की सूचनाएं हैं।
कलबुर्गी से मिली खबरों के अनुसार मंत्रिमंडल के फैसले के तुरंत बाद वहां लिंगायतों और वीरशैव लिंगायत समर्थकों ने प्रदर्शन किए। दोनों पक्षों के बीच हुई तकरार में वीरशैव लिंगायत नेता एमएस पाटिल की लिंगायत समर्थकों ने पिटाई कर दी। पुलिस ने किसी तरह बीच-बचाव कर पाटिल को बचाया। पाटिल ने बाद में स्टेशन बाजार पुलिस थाने में मारपीट की रिपोर्ट दर्ज कराई।
वीरशैव लिंगायत समन्वय समिति के अध्यक्ष चंद्रशेखर हिरेमठ ने राज्य सरकार के फैसले को राजनीति से प्रेरित फैसला बताया है। भाजपा सांसद शोभा करंदलाजे ने भी इस फैसले के लिए सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि सिद्धरामय्या सरकार समाज को तोडऩे का काम कर रही है। धर्म और जाति के आधार पर समाज के विघटन का यह प्रयास निंदनीय है। सिद्धरामय्या के कईमंत्री इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं।
जनता दल ध के प्रदेश अध्यक्ष एचडी कुमार स्वामी ने भी फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि राज्य सरकार इस संवेदनशील मुद्दे का इस्तेमाल चुनावों में लिंगायतों के वोट पाने के लिए कर रही है। यह पूरी कवायद राजनीति से प्रेरित है।
मुख्यमंत्री सिद्धरमय्या ने कोप्पल में कहा कि बैठक में इस मुद्दे को लेकर कोई भ्रम की स्थिति नहीं थी और सरकार ने सब कुछ सोच समझ कर यह सिफारिश करने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि समाज को धर्म और जाति के आधार पर बांटने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। बसवण्णा ने सदियों पहले समाज को सुधारने का प्रयास किया था।
राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को हुई बैठक के बाद न्यायाधीश नागमोहनदास की अगुवाई वाली विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक अधिनियम के अनुच्छेद 2 (डी) के तहत लिंगायत व वीरशैव लिंगायत (बसव दर्शन में आस्था रखने वाले) को धार्मिक अल्पसंख्यक के तौर पर मान्यता देने पर विचार की सिफारिश की है।