प्रमुख रूप से पूर्व प्रधानमंत्री और जद-एस सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता एम.मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व मुख्यमंत्री एम.वीरप्पा मोइली, पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा, जीएस बसवराजू, जीएम सिद्धेश्वर और बीएन बच्चेगौड़ा का चुनावी सफर अब खत्म हो गया। पिछले आम चुनावों में इन सभी नेताओं ने बढ़ती उम्र के बावजूद ताल ठोंका था। बड़े वोक्कालिगा एवं किसान नेता एचडी देवगौड़ा अब 91 वर्ष के हो चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान ही उन्होंने घोषणा की थी कि वह उनका आखिरी मुकाबला होगा। आखिरी मुकाबले में वह अपना पारंपरिक लोकसभा क्षेत्र हासन पौत्र प्रज्वल रेवण्णा के लिए छोड़ दिए और तुमकूरु से चुनाव लड़े। लेकिन, भाजपा प्रत्याशी जीएस बसवराजू से हार गए। बसवराजू भी अब 83 साल के हो चुके हैं और पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। बसवराजू का भी चुनावी सफर अब थम जाएगा।
दो दिग्गज लड़े और अब दोनों नहीं लड़ेंगेपूर्व मुख्यमंत्री एम.वीरप्पा मोइली भी उम्र के 84 वें पड़ाव पर हैं। हालांकि, उन्होंने कभी भी सक्रिय राजनीति से दूर होने के बारे में सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा लेकिन माना जा रहा है कि उनका चुनावी सफर भी थम चुका है। पिछली बार चिक्कबल्लापुर लोकसभा क्षेत्र से तीसरी बार जीत की तलाश में उतरे लेकिन, भाजपा के एक अन्य उम्रदराज नेता बीएन बच्चेगौड़ा से हार गए। बच्चेगौड़ा की उम्र भी अब 82 साल हो गई है और पार्टी ने उनकी जगह युवा उम्मीदवार डॉ के.सुधाकर को मैदान में उतारा है।
आखिरी दांव में मिली शिकस्त के साथ खत्म हुआ सफर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.मल्लिकार्जुन खरगे 2019 लोकसभा चुनावों से पहले कभी चुनाव नहीं हारे। पिछले चुनावो में मिली शिकस्त उनके जीवन की पहली और आखिरी हार थी। अब संभवत: खरगे कभी चुनाव नहीं लड़ें। उनकी उम्र भी 82 साल हो चुकी है और वे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं। खरगे ने अपने दामाद दोड्डमणि राधाकृष्ण को गुलबर्गा लोकसभा सीट से टिकट देकर एक तरह से यह जता दिया है कि, अब उनकी चुनावी राजनीति का सफर खत्म हो चुका है। खरगे राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं।
भारी मन से कहा अलविदा पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा को पार्टी ने इसबार बेंगलूरु उत्तर से टिकट नहीं दिया। उनकी उम्र 71 साल हो चुकी है। हालांकि, सदानंद गौड़ा पहले ही चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा कर चुके थे लेकिन, कथित तौर पर कुछ नेताओं के कहने से चुनाव लडऩे का मन बना चुके थे। जब उनकी जगह शोभा करंदलाजे को उम्मीदवार बनाया गया तो वे नाराज हो गए। पहले उन्होंने बगावत का संकेत दिया और फिर भारी मन से चुनावी राजनीति को अलविदा कह दिया।