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बैंगलोर

मनुष्य को अर्जुन की भांति लक्ष्यार्थी बनना चाहिए-डॉ.कुमुदलता

साधु-साध्वियों का जन्म दिवस

बैंगलोरOct 25, 2020 / 12:51 pm

Yogesh Sharma

मनुष्य को अर्जुन की भांति लक्ष्यार्थी बनना चाहिए-डॉ.कुमुदलता

मनुष्य को अर्जुन की भांति लक्ष्यार्थी बनना चाहिए-डॉ.कुमुदलता

बेंगलूरु. श्रीरंगपट्टण में गुरु दिवाकर मिश्री राज दरबार में साध्वी डॉ. कुमुदलता आदि ठाणा सुखसाता पूर्वक विराजमान है। साध्वी डॉ. महाप्रज्ञा ने नवपद पर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी डॉ.पदमकीर्ति ने श्रीपाल रास का वाचन किया। साध्वी राजकीर्ति ने नवपद आराधना की। विधि बड़ी भक्ति से करवाई गई। श्रीरंगपट्टण, पांडवपुरा, मंडिया इन क्षेत्रों में धर्म की लहर चारों ओर गूंज रही है। हर एक बच्चा धर्म के संस्कारों को लेकर अपने जीवन में परिवर्तित होता हुआ। अपने जीवन में आनंद का अहसास कर रहा है। दिवाकर मिश्री दरबार में रविवार को उपाध्याय प्रवर कस्तूरचंद उपाध्याय प्रवर पुष्कर मुनी, मालवाहिनी कमलावती, उपर्वतक गौतम मुनि का जन्मदिवस आयंबिल तप की आराधना से मनाया जाएगा। साध्वी डॉ. कुमुदलता ने कहा कि अपने सभी कर्मों का क्षय कर चुके, सिद्ध भगवान अष्टग़ुणों से युक्त होते हंै। वह सिद्धशिला जो लोक के सबसे ऊपर हंै, वहां विराजते हैं। अनंत आत्माएं सिद्ध बन चुकी है। जैन धर्म के अनुसार भगवंता किसी का एकाधिकार नहीं है और सही दृष्टि, ज्ञान और चरित्र से कोई भी सिद्ध पद प्राप्त कर सकता है। सभी अरिहंत अपने आयु कर्म के अंत होने पर सिद्ध बन जाते हंै। सिद्ध बन चुकी आत्मा जीवन मरण के चक्र से मुक्त होती है। अपने सभी कर्मों का क्षय कर चुके, सिद्ध भगवान अष्टगुणों से युक्त होते हैं। वह सिद्धशिला जो लोक के सबसे ऊपर है, वहां विराजते हंै। अनंत आत्माएं सिद्ध बन चुकी हैं। जैन धर्म के अनुसार भगवंत किसी का एकाधिकार नहीं है और सही दृष्टि, ज्ञान और चरित्र से कोई भी सिद्ध पद प्राप्त कर सकता है। सिद्ध बन चुकी आत्मा लोक के किसी कार्य में दखल नहीं देती। सिद्ध देहरहित होते हैं। वह अनन्तगुण होकर के भी एक समय में अनुभव किए गए सिद्धों के सुख के समान नहीं है। अर्थात समस्त संसार सुख के अनन्तगुणों से भी अधिक सुख को सिद्ध एक समय में भोगते हैं। इसी के साथ साध्वी ने इंसान को अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने पर सुझाव देते हुए कहा कि इंसान को अर्जुन की भांति लक्ष्यार्थी बनना चाहिए। लक्ष्यहीन जीवन अर्थहीन है। बिना लक्ष्य के जीवन एक भटकाव है। इसलिए लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है। लक्ष्य मनुष्य का न केवल भविष्य बदलता है अपितु उसके वर्तमान जीवन को भी संवरता है। जिस कार्य को अब तक प्राथमिकता दी जा रही थी, लक्ष्य बनाते ही वह प्राथमिकता बदल जाती है। गंतव्य का बोध न हो तो जीवन उस व्यक्ति की भांति जो गाड़ी में बैठा है किंतु कहा जाना है इसका उसे बोध नहीं है। संभव है, आज के युग मे ऐसे आदमी नही मिलते किन्तु संसार के मार्ग ऐसे हजारों आदमी मिल जाएंगे जो जीवन की ट्रेन में बैठकर पचास स्टेशन पर कर चुके है किन्तु वे अभी तक नही जानते कि उन्हें उतरना कहां है।

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