scriptपे-लोड क्षमता बढ़ी, नई तकनीकों पर लगी मुहर | Many new successful experiments done by ISRO in GSLV F-11 | Patrika News
बैंगलोर

पे-लोड क्षमता बढ़ी, नई तकनीकों पर लगी मुहर

अंतरिक्ष तकनीक : जीएसएलवी एफ-11 में इसरो ने किए कई नए सफल प्रयोग

बैंगलोरDec 20, 2018 / 11:42 pm

Rajendra Vyas

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पे-लोड क्षमता बढ़ी, नई तकनीकों पर लगी मुहर

जीसैट-7 ए उपग्रह में पहली बार किया ग्रेगोरियन एंटीना का उपयोग
बेंगलूरु. अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए हर मिशन में कुछ-न-कुछ नए प्रयोग करने का सिलसिला कायम रखते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने जीएसएलवी एफ-11 /जीसैट-7 ए मिशन में भी कई नए प्रयोग किए। मिशन की शानदार सफलता से कई नई तकनीकों पर मुहर लगी।
इसरो अध्यक्ष के.शिवन ने बताया कि इस बार जीएसएलवी की पे-लोड क्षमता बढ़ाने के लिए रॉकेट के दूसरे चरण और क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) में कई बदलाव किए गए। जहां दूसरे चरण में 37.5 टन प्रणोदक (ईंधन) भरा जाता था वहीं इस बार दूसरे चरण में 40 टन ईंधन भरा गया। वहीं क्रायोजेनिक चरण में 12 टन की बजाय 15 टन ईंधन भरा गया था। इस बार जो क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल किया गया उसकी थ्रस्ट शक्ति भी 13 फीसदी बढ़ाई गई थी। पूर्व जीएसएलवी की तुलना में इस जीएसएलवी की ऊंचाई भी 1.5 मीटर अधिक थी। इससे न सिर्फ जीएसएलवी की पे-लोड क्षमता बढ़ी बल्कि वह जीसैट-7 ए उपग्रह को उम्मीद से भी 2 हजार किमी दूर तक ले गया। इन नए प्रयोगों की सफलता से जीसैट-7 ए की परिचालन अवधि भी बढ़ जाएगी।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक एस.सोमनाथ ने कहा कि यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण मिशन था। जीएसएलवी एफ-11 पूर्ववर्ती जीएसएलवी रॉकेट से कई मायनों में अलग था। इसके दूसरे चरण और क्रायोजेनिक चरण में सुधार के लिए सिस्टम इंजीनियरिंग में काफी बदलाव किए गए। नए तत्वों और उपकरणों का प्रयोग हुआ।
पूरे रॉकेट की संरचना को काफी सावधानी से बदला गया है। इसके लिए कई चीजें समझने की जरूरत थी। रॉकेट को संपूर्णता में समझने और नए बदलावों व नए तत्वों के प्रयोग के प्रभावों का सटीक आकलन करना था। हार्डवेयर में बदलाव के साथ नियंत्रण प्रणाली, एयरोडायनामिक्स में भी बदलाव हुए जिसे समझना व मिशन डिजाइनिंग के साथ तमाम प्रणालियों का आपसी तालमेल बिठाना काफी चुनौतीपूर्ण था। उन्हें खुशी है कि वैज्ञानिकों ने जीएसएलवी रॉकेट को काफी अच्छी तरीके से समझा और सफलता की नई कहानी लिखी। अब यह रॉकेट पीएसएलवी जैसा विश्वसनीय हो चुका है। अब अगले जीएसएलवी एफ-10 और जीएसएलवी एफ-12 मिशनों में पे-लोड क्षमता और बढ़ाई जाएगी।
जीसएलवी के अलावा जीसैट-7ए उपग्रह में भी कई नए प्रयोग किए गए जिसमें से एक है ग्रेगोरियन एंटीना का उपयोग। पहली बार इसरो ने अपनी उपग्रहों की क्षमता और परिचालन योग्यता बढ़ाने के लिए इस तरह के एंटीना का उपयोग किया है। वायुसेना के पायलट रहित विमानों और अवाक्स प्रणाली के उपग्रह आधारित परिचालन में यह एंटीना बेहद कारगर साबित होगा।
दरअसल, इसरो ने पिछले एक महीने में तीन मिशन श्रीहरिकोटा से लांच किए हैं और तीनों मिशन अलग-अलग प्रकार के व एक दूसरे से भिन्न थे। पिछले 14 नवम्बर को लांच किया गया जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 इसरो की पांचवी पीढ़ी का सबसे भारी रॉकेट था जिसकी अपनी जटिलता है। वहीं 29 नवम्बर को पीएसएलवी सी-43 से हायसिस उपग्रह के साथ 30 विदेशी उपग्रहों को छोड़ा गया। अब जीएसएलवी मार्क-2 कई बदलावों के साथ लांच किया गया है। इसरो वैज्ञानिकों ने इन जटिल मिशनों को सफलता पूर्वक पूरा किया है।
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