विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर निम्हांस की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा , मैं यह कहने के लिए माफी चाहूंगा कि भारत में काफी संख्या में आधुनिक महिलाएं सिंगल रहना चाहती हैं। ऐसे चलन के लिए पाश्चात्य संस्कृति को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम पाश्चात्य देशों के रास्ते पर चल रहे हैं। लोग नहीं चाह रहे हैं कि माता-पिता साथ रहें, हम अपने दादा-दादी के साथ रहना भूल गए हैं।
भौतिकवादी दुनिया, सिमटा परिवार
सुधाकर ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना होगा। देश में सात में से एक व्यक्ति को कोई न कोई मानसिक समस्या से जूझना पड़ रहा है। यह हल्का, मध्यम या गंभीर हो सकता है। लोग धार्मिक विश्वासों के साथ रहते हैं। पहले लोग बड़े संयुक्त परिवार में रहते थे। लेकिन बीते दो-तीन दशकों के दौरान लोग एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगे। 21वीं सदी अत्यंत भौतिकवादी दुनिया रही है। अब तो कृषि क्षेत्र से जुड़े लोग भी प्रतिस्पर्धा, तनाव व अवसाद के शिकार हो रहे हैं। ज्यादातर मानसिक बीमारियों को दवाइयों से ठीक किया जा सकता है। कई बीमारियों से छुटकारे के लिए दवा की भी जरूरत नहीं है। योग और ध्यान से इन समस्याओं से काफी हद तक निपटा जा सकता है। सहानुभूति, करुणा और एक रहना हमेशा मानसिक स्वास्थ्य को बेहरत बनाए रखेगा। हैरत है कि आज कई लोग दादा और दादी तो क्या अपने माता-पिता को भी साथ नहीं रख रहे हैं।