यहां शुक्रवार को मौसम परिवर्तन को लेकर आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में भाग लेते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद भी राज्य में दलहन तथा तिलहनों की कोई कमी नहीं है। किसानों का मौसम का साथ नहीं मिलने के कारण राज्य के विभिन्न जिलों में दलहन तथा तिलहनों की अपेक्षित बुवाई संभव नहीं हुई है।
गत कई वर्षों से राज्य के किसान कभी सूखा तो कभी बाढ़ की आपदा से संघर्ष कर रहें है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए विशेष कार्ययोजना जारी करनी चाहिए। केंद्रीय निति आयोग, प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्रों में भी मौसम परिवर्तन को लेकर कई बार चिंतम-मंथन किया गया है।
इस समस्या को लेकर कई कार्यशालाएं तथा विचार संगोष्ठियों का आयोजन भी चलते रहता है। लेकिन किसानों की समस्या के सटीक समाधान को लेकर अभी तक कोई असरदार तथा निर्णायक कदम उठाना संभव नहीं हुआ है। जिसके परिणाम स्वरुप यह समस्या यथावत है। ऐसे में इस विकराल समस्या का स्थाई समाधान करना हम सबके लिए एक चुनौती है।
जलवायु परिवर्तन पर सतर्क रहने की जरुरत उन्होंनें कहा की गत वर्ष राज्य में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा हमारे लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर एक चेतावनी है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण राज्य के 20 जिलों की 113 तहसीलों में अप्रत्याशित बाढ़ आ गई। इनमें से 43 तहसीलों में हालांत काफी गंभीर थे। प्राकृतिक आपदा के कारण से राज्य के सैकड़ों किसानों का जीवन ही तहस-नहस हो गया था।
उन्होंने कहा कि राजस्थान को छोड़कर कर्नाटक देश का दूसरा बड़ा राज्य है जहां पर शुष्क भूमि अधिक है। ऐसी स्थिति में बारिश के अभाव के कारण राज्य के 60 से 70 फीसदी कृषि भूमि में बुवाई संभव नहीं हो रही है। इन स्थितियों में शुष्क भूमि की सिंचाई के लिए विशेष योजनाओं की दरकार है। प्रति वर्ष समुंदर में हजारों टीएमसी पानी समा रहा है। इस पानी का सटीक उपयोग करने के लिए कार्ययोजना की दरकार है।
उन्होंने कहा कि देहातों में तालाबों के उन्नयन कार्य युद्ध स्तर पर होने चाहिए और तालाबों को भरने से भूजलस्तर में वृद्धि संभव है। पानी का विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए राज्य की जनता को भी अपना सामाजिक दायित्व निभाना चाहिए। बारिश के पानी का संग्रहण तथा पौधारोपण केवल सरकारी कार्यक्रम नहीं बल्कि जनांदोलन बनना चाहिए।