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बैंगलोर

मंगल से प्रभावहीन हो जाता अनिष्ट

जयमल जैन संघ श्रावक संघ के तत्वावधान में जय परिसर महावीर धर्मशाला में प्रवचन देते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा कि मंगल सभी प्रकार के विघ्नों का नाश करने वाला होता है।

बैंगलोरSep 20, 2018 / 04:38 am

शंकर शर्मा

मंगल से प्रभावहीन हो जाता अनिष्ट

मंगल से प्रभावहीन हो जाता अनिष्ट

बेंगलूरु. जयमल जैन संघ श्रावक संघ के तत्वावधान में जय परिसर महावीर धर्मशाला में प्रवचन देते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा कि मंगल सभी प्रकार के विघ्नों का नाश करने वाला होता है। किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में मनुष्य अपनी श्रद्धा के अनुसार अपने आराध्य की स्तुति करता है। इससे वह व्यक्ति कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करने की शक्ति संकल्प व साहस बटोरता है। मंगल से अनिष्ट वस्तुएं प्रभावहीन हो जाती हैं। धर्म को सर्वोत्कृष्ट मंगल बताते हुए मुनि ने कहा कि यह कभी अमंगलकारी नहीं हो सकता।


धर्म का आलंबन लेने वाले के सभी प्रकार के अवरोध, अड़चन, बाधा दूर हो जाते हैं। जो दूसरों को अड़चन देता है, उसके स्वयं के भी बाधा उत्पन्न हो जाते हैं। धर्मसभा में उगमराज बोहरा, महावीरचंद मेहता, जसवंतराम कांकरिया आदि
मौजूद थे।


किरणबाई समदडिय़ा ने १५ उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। हस्तीमल किरणदेवी लुंकड़ ने शीलव्रत के प्रत्याख्यान अंगीकार किए। संघ की ओर से दोनों का सम्मान किया गया।

महापुरुषों की जयंती में श्रद्धा से भर जाता है मन
बेंगलूरु. वर्धमान सथानकवासी जैन संघ, विजयनगर में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि हम जब किसी महान पुरुष की जन्म जयंती मनाते हैं तब मन श्रद्धा से भर जाता है। वैसे तो जन्म दिवस सभी मनुष्यों का मनाया जाता है, परंतु वह सब साधारण प्राणी हैं। जयंती तो महान पुरुषों की ही मनाई जाती है।

आज तीन-तीन महान पुरुषों का स्मरण किया जा रहा है। प्रथम पट्टधर आचार्य आत्माराम, पंजाब प्रवत्र्तक शुक्लचंद, चतुर्थ पट्टधर आचार्य शिव मुनि। उन्होंने कहा कि जब हम सथानकावासी जैन समाज के महापुरुषों का नाम स्मरण करते हैं तो इस युग में सर्वोपरि आचार्य आत्माराम का नाम लेना होगा। इन्होंने साधु जीवन की कठोर तपस्या का पालन किया।

क्रोध आत्मा का प्रबल शत्रु
बेंगलूरु. हनुमंतनगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी सुप्रिया ने बुधवार को प्रवचन में कहा कि क्रोध आत्मा का प्रबल शत्रु है। जब तक क्रोधादि पूर्ण रूप से शांत नहीं होते एवं कषायों की उपशांतता नहीं होती तब तक कितनी भी साधना कर लें मोक्ष नहीं मिलता। कषायों के सेवन से आत्मा मलीन होती है। व्यक्ति कषायों के वश में अनंत काल तक संसार में परिभ्रमण करते रहता है।

जब हमारी इच्छा के अनुकूल कार्य नहीं होता है तब मन के भाव बिगडऩे लगते हैं। व्यक्ति क्रोधावेश में आ जाता है। क्रोध में कभी-कभी व्यक्ति आत्महत्या जैसा जघन्य कदम भी उठा लेता है। सच्चा साधक वही है जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में सहनशीलता का भाव बनाए रखता है। अनेक तपाराधकों ने ४, ५, ९, १४ आदि उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। साध्वी सुमित्रा ने सागरदत्त चरित्र का वांचन किया। संचालन संजय कुमार कचोलिया ने किया।

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