मुख्य न्यायाधीश अभय ओक और न्यायमूर्ति पीजीएम पाटिल की पीठ ने महाधिवक्ता से पूछा कि क्या बच्चों की काउंसलिंग करना पुलिस का काम है। पुलिस को बच्चों की काउंसलिंग का कोई प्रशिक्षण तो दिया नहीं जाता है। नवडगी ने जवाब दिया कि किशोर न्याय अधिनियम में इस्तेमाल किया गया शब्द काउंसलिंग है, अधिकारी ने उसी का इस्तेमाल किया है। उसने नाटक में भाग लेने वाले सात बच्चों और इसे देखने वाले 10 छात्रों के बयान दर्ज किए थे। उस समय वे सिविल ड्रेस में थे और साथ में जिला बाल संरक्षण अधिकारी और विशेष किशोर पुलिस इकाई के सदस्य भी उपस्थित थे।
वहीं, पुलिस ने अपनी आपत्ति में कहा कि 28 जनवरी 2020 को जांच अधिकारी, बाल संरक्षण अधिकारी गौरीशंकर और विशेष किशोर पुलिस इकाई की सदस्य जगादेवी के साथ विजिटिंग रूम में गए थे। वहां तीन बच्चों, उनके अभिभावक और शिक्षक को पेश किया गया था। वीडियोग्राफर एक पुलिस कांस्टेबल था जो यूनिफार्म में था। उसे दूसरों ने अपनी वर्दी बदलने और सिविल ड्रेस में विजिटिंग रूम में आने को कहा था।
आपत्ति में यह भी कहा गया है कि कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ जयश्री ने स्कूल का दौरा किया और छात्र और कर्मचारियों के साथ परामर्श किया। जांच अधिकारी और पुलिस अधीक्षक से भी पूछताछ की और उनकी राय थी कि मामले में किसी भी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है। पीठ ने मामले को 9 मार्च तक के लिए स्थगित करते हुए याचिकाकर्ताओं को 6 मार्च तक पुलिस की आपत्ति पर प्रतिवाद दायर करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि मामले में वकील नयना ज्योति झवर और साउथ इंडिया सेल फॉर मानवाधिकारी शिक्षा एवं निगरानी सेल की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि पुलिस की पूछताछ अवैध थी और उसपर कार्रवाई की मांग की है।