राज्य की सभी २८ लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और जद-एस गठबंधन के प्रत्याशियों तथा भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है जबकि मंड्या में भाजपा ने निर्दलीय सुमालता को समर्थन दिया है। अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व की वकालत करने वाले किसी भी दल ने इस बार मुस्लिमों पर दांव नहीं खेला है। प्रमुख मुस्लिम उम्मीदवार में कांग्रेस ने सिर्फ बेंगलूरु मध्य संसदीय क्षेत्र से रिजवान अरशद को प्रत्याशी बनाया है। वहीं जद-एस और भाजपा ने किसी भी संसदीय क्षेत्र में मुसलमान उम्मीदवार नहीं उतारा है।
हालांकि कांग्रेस को लेकर ऐसी संभावना जताई जा रही थी कि धारवाड़ से इस बार शाकिर सनदी को उम्मीदवार बनाया जाएगा, लेकिन पार्टी ने अंतिम समय में लिंगायत समुदाय से आने वाले विनय कुलकर्णी को उम्मीदवार बना दिया। इसी प्रकार हावेरी (पूर्व में धारवाड़ दक्षिण क्षेत्र से जाना जाता था) में पिछले ६२ वर्षों से कांग्रेस लगातार मुस्लिम चेहरे को उम्मीदवार बनाती रही थी, लेकिन इस वहां भी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार पर दांव खेलना मुनासिब नहीं समझा।
कर्नाटक से मुस्लिम सांसदों की संख्या हमेशा ही कम रही है। वर्ष-१९८९ में राज्य से दो मुस्लिम सांसद थे, उस एमबी मुजाहिद धारवाड़ दक्षिण से सीके जाफर शरीफ बेंगलूरु उत्तर से निर्वाचित हुए। वहीं वर्ष १९९१ से २००४ तक राज्य से हर बार सिर्फ एक मुस्लिम सांसद बने। इसमें भी १९९१, १९९८ और १९९९ में सीके जाफर शरीफ, जबकि १९९६ में कमरुल इस्लाम जीते। वहीं आखिरी बार २००४ में कलबुर्गी से इकबाल अहमद सरादगी को जीत मिली। २००९ और २०१४ के संसदीय चुनाव में किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को जीत नहीं मिली।
वर्ष २००४ से २०१९ के बीच हुए चार लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस और जद-एस ने ११ मुस्लिम चेहरों को उम्मीदवार बनाया, वहीं भाजपा की ओर से संख्या शून्य रही। वर्ष २००४ में प्रमुख दलों की ओर से चार मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाया गया, जिसमें एक को जीत मिली। २००९ और २०१४ में तीन-तीन मुस्लिम उम्मीदवार रहे, लेकिन जीत किसी को नहीं मिली। इस बार कांग्रेस ने सिर्फ रिजवान अरशद को उम्मीदवार बनाया है।