उन्होंने कहा कि इससे पहले वर्ष 2013-14 में सिद्धरामय्या सरकार के समय भी पेट्रोलियम उत्पादों तथा कोयले के मूल्यों में वृद्धि के कारण बिजली वितरण कंपनियों के प्रस्ताव पर आयोग ने दरों में वृद्धि को मंजूरी दी थी।
उन्होंने कहा कि बिजली उत्पादन खर्चे के आधार पर ही केईआरसी की ओर से बिजली के दरों का निर्धारण किया जाता है। लिहाजा, बिजली के दरों में वृद्धि को लेकर राज्य सरकार पर दोषारोपण तार्किक नहीं है।
उधर, विपक्षी दलों ने इसे लेकर सरकार पर निशाना साधा। विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धरामय्या ने कहा कि भाजपा सरकार चाहती है कि गरीब खत्म हो जाएं। पहले से ही इतनी महंगाई है। भाजपा सरकार की विफलता की कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री और जद-एस नेता एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस की मानसिकता एक समान है। दोनों दल सत्ता में होने पर पहले बिजली की दर में वृद्धि को प्रशासनिक अनुमति देते हैं और चुनाव करीब आते ही बिजली दरों में कटौती की घोषणा की जाती है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा मंत्री वी. सुनील कुमार का बिजली की दरों में वृद्धि के प्रस्ताव में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होने का दावा हास्यास्पद है।