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बैंगलोर

रात्रि में बैक्टीरिया नकारात्मकता छोड़ते हैं-समकित मुनि

धर्मचर्चा

बैंगलोरOct 21, 2020 / 09:46 am

Yogesh Sharma

रात्रि में बैक्टीरिया नकारात्मकता छोड़ते हैं-समकित मुनि

रात्रि में बैक्टीरिया नकारात्मकता छोड़ते हैं-समकित मुनि

बेंगलूरु. अशोकनगर शूले जैन स्थानक में विराजित श्रमण संघीय डॉ. समकित मुनि ने कहा संसार के अधिकांश प्राणी भयंकर अंधकार में हैं। द्रव्य और भाव रूपी दो प्रकार का अंधकार है। सूर्यास्त पश्चात द्रव्य अंधकार होता है। नरक, नारकी, पाप कर्म एवं अशुभ पुद्गल यह चार पदार्थ नरक में अंधकार करते हैं। देव, देवी, देवविमान और देव आभूषण यह देवलोक में प्रकाश करते हैं। मनुष्यलोक में चंद्र, सूर्य, अग्नि और मणी आदि प्रकाश करते हैं।
मुनि ने कहा द्रव्य अंधकार भी खतरनाक होता है। दिन की अपेक्षा रात्रि में बीमारी अधिक परेशान (वेदना) करती है। अधिकांश पक्षीजगत सूर्यास्त पश्चात मौन-स्थिर हो जाते हैं एवं अन्न-जल छोड़ देते हैं। जैन संत की भी यही चर्या है कि वह रात्रि में भोजन त्याग करते हैं, गमणागमन अधिक नहीं करते एवं अधिकतर मौन रहते हैं। आकाश में स्नेहकाय होती है जो सूर्य के रहते नीचे नहीं आते, सूर्य अस्त होने पर स्नेहकाय ऊपर से नीचे गिरना प्रारंभ हो जाती है। अनेकों ऐसे बैक्टीरिया हैं जो सूर्य के प्रकाश में निष्क्रिय हो जाते हैं। सूर्यास्त होते ही नकारात्मक परमाणु मस्त हो जाते हैं। रात्रि में बैक्टीरिया नकारात्मकता छोड़ते हैं। इसी कारण से रात्रि में चोरी आदि गलत कार्य (पापकर्म) अधिक होते हैं। द्रव्य अंधकार से वातावरण ऐसा बन जाता है जिससे प्राणी गलत काम करने के लिए तत्पर हो जाता है। सूर्य का प्रकाश अनेकों पाप कर्मों से बचाता है। प्रकाश जीवन का सबसे बड़ा बल है।
भाव अंधकार के बारे में बताते हुए मुनि ने कहा मिथ्यात्व सबसे बड़ा भाव अंधकार है। मिथ्यात्वावस्था में जीव का विकास नहीं हो पाता। प्रत्येक आत्मा अपने प्रारंभिक चरण में मिथ्यात्व से युक्त रहती है। मुनि ने निगोद एवं मिथ्यात्व पर विस्तार पूर्वक विवेचन किया। हमारी आत्मा पर सर्वप्रथम उपकार सिद्ध भगवन्तों का है। जीव के सिद्ध होने पर ही एक जीव निगोद की अव्यवहार राशि से निकलकर व्यवहार राशि में पहुंचता है, जहां से जीवात्मा का विकास प्रारंभ होता है। धर्म तर्क पर नहीं बल्कि श्रद्धा पर जीता है। जब तक जीवन में श्रद्धा घटित नहीं होती तब तक अवस्था मिथ्यात्व की होती है। मिथ्यात्व से दूर होना ही समकित यात्रा का लक्ष्य है। समकित यात्रि मिथ्यात्व को दूर करने का प्रयत्न करता है। इस मौके पर राजेंद्र मंरलेचा, सुनील मरलेचा, देवराज चोपड़ा, देवराज खींचा, शोभाबाई खींचा, इंदिराबाई चोपड़ा, माया कोठारी उपस्थित थे।

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