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बैंगलोर

बेलंदूर ही नहीं,कई झीलों का पानी बन चुका है जहर

प्रदूषण के उच्च स्तर और बार-बार आग लगने की घटनाओं से भले ही बेलंदूर झील हमेशा सुर्खियों में होती है लेकिन शहर की अधिकांश झीलों की हालत इससे बेहतर नहीं

बैंगलोरJan 23, 2018 / 10:59 pm

शंकर शर्मा

BELLANDUR LAKE

बेंगलूरु. प्रदूषण के उच्च स्तर और बार-बार आग लगने की घटनाओं से भले ही बेलंदूर झील हमेशा सुर्खियों में होती है लेकिन शहर की अधिकांश झीलों की हालत इससे बेहतर नहीं है। हाल ही में राज्य प्रदूषण बोर्ड (केएसपीसीबी) ने शहर की 53 झीलों का जायजा लिया, जिसमें से 42 झीलों की स्थिति ऐसी है कि उसका पानी निस्तार के लायक भी नहीं है।


प्रदूषण बोर्ड ने 53 झीलों की जल गुणवत्ता सूचकांक (डब्लूक्यूआई) की जांच की तो पता चला कि 11 झीलें तो लगभग सूख चुकी हैं और उसमें पानी ही नहीं बचा है। झीलों के पानी की गुणवत्ता की जांच हर तीन महीने में की जाती है। पिछली बार नवंबर 2017 में यह जांच हुई और किसी भी झील का पानी संतोषजनक नहीं पाया गया।

जल की गुणवत्ता को पांच विभिन्न वर्गों ‘ए’ ‘बी’ ‘सी’ ‘डी’ और ‘ई’ में रखा जाता है। ‘ई’ श्रेणी सबसे खराब गुणवत्ता का परिचायक है। रिपोर्ट में एक भी झील ‘ए’ या ‘बी’ श्रेणी में नहीं जगह बना पाई। अधिकांश झीलें ‘डी’ श्रेणी में रखी गईं। अधिकारियों ने सभी झीलों से नमूना एकत्रित किया और उसमें कॉलिफॉर्म जीवों की उपस्थिति, पीएच, जैव रासायन ऑक्सीजन की मौजूदगी और अन्य चीजों की जांच की।


परिणामों के आधार पर झीलों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया। इस में ‘ए’ श्रेणी की झीलों का मतलब उनका पानी पीने योग्य है जबकि ‘ई’ श्रेणी की झीलों का मतलब उसका पानी किसी काम का नहीं है।


जांच की गई 53 में से 42 झीलों का पानी नहाने के लायक नहीं था और इन 42 में से 7 झीलों को ‘ई’ श्रेणी में रखा गया जिसका पानी किसी भी काम का नहीं रहा। वहीं 35 झीलें ‘डी’ श्रेणी में रखी गई।


‘डी’ और ‘ई’ श्रेणी के झीलों के लिए अधिकारियों ने उद्योगों द्वारा रसायन एवं घरों से प्रवाहित किए जाने वाले अपशिष्ट को जिम्मेदार ठहराया। यहां तक कि यलहंका, पुट्टेनहल्ली, सैंकी, मडीवाला, अरिकेरे, दोरिकेरे, उत्तरहल्ली, बैरासंद्रा और हारोहल्ली की झीलों का पानी भी असंतोषजनक पाया गया।


पर्यावरणविद एएन येल्लप्पा रेड्डी के अनुसार अगर 14 साल तक झील में गाद प्रवाहित किए जाएं या एक जगह कचरा छोड़ दिया जाए तो उसमें मीथेन गैस बनने लगता है। यह गैस बेहद ज्वलनशील होती है। बेलंदूर झील में जो गाद और कचरा जमा हुआ है वह एक या दो दिन में नहीं हुआ है।

यह झील में 40 फीट की गहराई तक जमा हुआ है। यहां 5 हजार लोग मिलकर भी जल्दी आग नहीं बुझा पाएंगे। यह पिछले कई वर्षों द्वारा की गई खुद की गलतियों का परिणाम है। शेष झीलों की हालत भी बेहद खराब है और इनमें कब स्वत: आग लग जाए, कहना मुश्किल है। एक तरह से बेंगलूरु बेहद ज्वलनशील मीथेन बम पर बैठा हुआ है। इस खतरे को हमने खुद आमंत्रित किया है और इस रसायनिक बम से बचने के लिए समय भी अब बहुत कम बचा है।


उन्होंने कहा कि जब वे युवा थे, उस समय घरों से निकलने वाला कचरा और आज का कचरा बिल्कुल अलग हैं। शहर की 40 फीसदी आबादी भू-जल पर निर्भर है लेकिन शहर में भू-जल या भू-तल का पानी काफी प्रदूषित हो चुका है।

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