लगातार कई ट्वीट करते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि डीएमके की सांसद से पूछा गया कि क्या आप भारतीय हैं। कनिमोझी के साथ हुए इस अपमान के खिलाफ मैं अपनी आवाज उठाता हूं। उनका कहना था कि यह बहस का विषय है कि किस तरह दक्षिण भारत के नेताओं से हिन्दी भाषा राजनीति ने अवसर छीन लिए हैं। हिन्दी राजनीति ने कई दक्षिण भारतीय नेताओं को प्रधानमंत्री बनने से रोका है।
उन्होंने इस कड़ी में एचडी देवगौड़ा, करुणानिधि, कामराज का नाम लिया। साथ ही कहा कि देवगौड़ा इस बाधा को पार करने में सफल रहे लेकिन कई मौके पर उन्हें भाषा को लेकर आलोचना भी झेलनी पड़ी।
लालकिले से तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा के हिन्दी में भाषण का जिक्र करते हुए कुमारस्वामी ने कहा कि यह हिन्दी राजनीति की सफलता थी कि देवगौड़ा को हिन्दी में भाषण देना पड़ा। हालांकि उन्होंने देवगौड़ा के मान जाने की वजह यह बताई कि अधिकांश किसान यूपी व बिहार से थे।
गैर हिन्दी राजनेताओं का सम्मान नहीं अगले ट्वीट में कुमारस्वामी ने लिखा कि मेरे साथ भी यही अनुभव रहा, मैं दो बार लोकसभा का सदस्य रहा हूं। सत्ताधारी दल दक्षिण भारत के लोगों की अनदेखी करते हैं। मैंने करीब से देखा है कि वे किस तरह हिन्दी राजनीति चलाते हैं और गैर हिन्दी राजनेताओं का सम्मान नहीं करते हैं।
हिन्दी को लेकर केन्द्र के रवैए पर सवाल हिन्दी को लेकर केन्द्र के रवैए पर भी सवाल उठाते हुए कुमारस्वामी ने लिखा कि एक ओर तो कहा जाता है कि हिन्दी अन्य भाषाओं में से एक है, दूसरी ओर पूरी दुनिया में इसे लोकप्रिय बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। उन्होंने इसे छद्म कार्यक्रम बताते हुए कहा कि सभी की भाषाओं के प्रति प्रेम व सम्मान से ही इसका मुकाबला किया जा सकता है।