इस स्थिति का फायदा उठाते हुए बजरी की कालाबाजारी चरमसीमा पर पहुंची। इसके समाधान के लिए वर्ष 2016-17 में सिद्धरामय्या के नेतृत्ववाली सरकार ने मलेशिया से बजरी आयात करने का फैसला किया। 7 हजार करोड़ रुपए के कारोबार संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर किए गए। मलेशिया से आयातित बजरी जहाज से आंध्र प्रदेश के ‘कृष्णपट्टणम’ बंदरगाह तक लाई गई, वहां से मालगाड़ी से राज्य तक पहुंचाया गया।
मैसूरु सेल्स इंटरनेशनल लिमिटेड (एमएसआइएल) के माध्यम से इस बजरी को ‘मलेशिया सैंड’ के नाम से बेचने का निर्णय हुआ। मलेशिया से 55 हजार टन बजरी का आयात की गई। 50-50 किलो के बैग में पैक कर एमएसआइएल की ओर से 3500 से 4000 रुपए प्रति टन के हिसाब से बिक्री की जा रही थी।
वर्ष 2016-17 में बाजार में बजरी की किल्लत के चलते शुरुआत में लगभग दो हजार टन बजरी बिकी। रेत में नमक का अनुपात अधिक
इसकी बिक्री कम होने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि इसमें नमक का अनुपात अधिक है। भवन निर्माण क्षेत्र में यह बात प्रचलित की गई कि कॉलम्स तथा रूफिंग में लगने वाली छड़ों को बजरी में मौजूद नमक नुकसान पहुंचाता है।
यही वजह है कि ठेकेदार और व्यक्तिगत खरीदारों ने इस बजरी से दूरी बना ली। अब आयातित बजरी के बिक्री नहीं के बराबर है। लगभग 53 हजार टन बजरी एमएसआइएल के रामनगर, मेंगलूरु तथा मैसूरु के गोदामों में पड़ी है।
गोदाम में पड़ी बजरी का मूल्य 6 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा बताया जा रहा है। बजरी का क्या किया जाए, इस बात को लेकर एमएसआइएल प्रबंधन पसोपेश में है।