वर्ष १९६७ में पहली बार मतदान करने वाले धीरेंद्र कुमार ने कहा देश की जनता ने १९७५ के आपातकाल के बाद मतदाधिकार से ही उस समय के अजेय सत्ताधारियों को बदल दिया था। उन्होंने कहा कि आज के समय में राजनीतिक दल छद्म भेष धरकर जनता को बरगला रहे हैं, यही कारण है कि मतदान को लेकर उदासीनता दिखती है। ऐसे में मतदाताओं को अपने मत की ताकत का अहसास करना चाहिए और सही का निर्वाचन करें ताकि वे जनहित में काम करें।
राजस्थान पत्रिका ने सामाजिक सरोकार में यह एक जिम्मेदारीपूर्ण पहल की है। जागो जनमत में उपस्थित सुनील सांखला, प्रकाश खांटेड़, नवीन रांका आदि ने भी मतदान की महत्ता पर प्रकाश डाला।
प्रशांत सिंघी ने कहा कि सोशल मीडिया पर हर विचारधारा के लोग अपनी बात रखते हैं। ऐसे में मतदाताओं को भ्रामकता से बचने की जरूरत है। मतदाता बहकाने वाले पोस्टों में न फंसकर उचित-अनुचित की समझ रखें और सोशल मीडिया के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को मतदान के लिए प्रोत्साहित करें।
दिनेश कांकडिय़ा ने कहा कि कई लोग मतदान के दिन को छुट्टी के रूप में बिताकर समय गंवा देते हैं लेकिन वे हर बार न सिर्फ खुद मतदान करते हैं बल्कि परिवारजनों और पड़ोसियों को भी मतदान कराते हैं। उन्होंने कहा कि मतदान को लेकर मैं काफी उत्साहित रहता हूं और यही कारण है कि मैं अपनी बुजुर्ग मां को हर बार पहली मतदाता के रूप में मतदान केंद्र पर ले जाने का प्रयास करता हूं। इस बार भी उनकी ८२ वर्षीय मां मतदान को लेकर उत्साहित हैं।
बिहार के श्रीकांत शर्मा ने कहा कि प्रजातंत्र के लिए कम मतदान होना दुखदायी है। उन्होंने कहा कि पहले के दौर में लोग कई प्रकार की तकलीफ झेल कर भी मतदान करते थे लेकिन आज के दौर में सुविधाएं बढऩे के बाद भी लोगों में मतदान को लेकन उत्साह नहीं दिखता है। उन्होंने कविता के माध्यम से कहा, ‘प्रजातंत्र को महफूज रखना है तो, अपने कर्तव्य का बोध समझना होगा, मताधिकार का प्रयोग करके, प्रजातंत्र का मान बढ़ाना होगा।’