लघु सिंचाई मंत्री सीएस पुट्टराजू के मुताबिक वर्ष 2017-18 में ‘बहुग्राम योजने’ नामक योजना की रूपरेखा तय की गई थी। इसे लागू किए जाने से कोप्पल जिले के कई सूखाग्रस्त गांवों में गर्मी के दौरान भी पेयजल की कोई समस्या नहीं है। इसके अंतर्गत जिले की प्रमुख नदियों का पानी नहरों के माध्यम तालाबों में भरा जाता है। इस योजना को सफल बनाने में लघु सिंचाई विभाग के अभियंता तथा कर्मचारियों ने काफी मेहनत की है। कोप्पल जिले में इसके सफल होने के बाद राज्य के 24 जिलों को इसके दायरे में लाया गया है। राज्य के 539 तालाब नदियों के पानी से भरे जाएंगे।
एमबी पाटिल जब जलसंसाधन मंत्री थे तब विजयपुरा जिले में मुद्देबिहाल समेत जिले के 113 सूखे तालाब कृष्णानदी के पानी से भराए गए। इस योजना की सफलता के पश्चात राज्य के अन्य जिलों में इस योजना का विस्तार किया गया। अब राज्य के दावणगेरे, हावेरी,गदग, बेलगावी,कोप्पल, यादगिर, बीदर जिलों में इस योजना का विस्तार किया गया है।इस योजना के कारण इन जिलों के कई गावों के तालाब सूखे में भी लबालब थे। इस कारण से भूजलस्तर बढ़ गया। आस-पास के क्षेत्रों मेंं नलकूपों में आसानी से पानी मिलने के काारण यहां के खेत सूखे के दौरान भी लहलहा रहे हैं।
तुमकूरु में कई तालाब सूखे, अब नहीं आते विदेशी पक्षी
तुमकूरु. दो से ढाई दशक पहले तक जिले के मधुगिरी, चिकनायकन हल्ली, सिरा तहसीलों में कई तालाब बारहों माह भरे रहते थे। ये तालाब विभिन्न प्रजाति के देशी-विदेशी पक्षियों का आशियाना हुआ करते थे। मगर अब यह तालाब सूख गए हैं, जिससे कई प्रजाति के विदेशी पक्षी दिखाई नहीं देते। बताया जाता है कि यह विदेशी पक्षी यहां वर्ष के निर्धारित मौसम में प्रजनन के लिए पहुंचते थे। पक्षियों को निहारने और कैमरों में कैद करने के लिए यहां लोगों की भीड़ लगती थी। मगर अब यह विदेशी मेहमान नदारद हैं।
जिले के सिरा तहसील के मशहूर कग्गलडु पक्षीधाम मेंश्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों के पक्षी बड़ी संख्या में पहुंचते थे। सूखे के कारण सभी तालाब सूख जाने से इस वर्ष कोई विदेशी पक्षी यहां नहीं दिखाई दिया है। सिरा, कल्लंबेला, बोरन कवणे तथा वाणी विलास बांध में थोड़ा बहुत पानी बचा है। वर्ष 1997 में इस पक्षी धाम में पहली बार सैकड़ों की संख्या में विदेशी पक्षी दिखाई दिए थे। यह विदेशी पक्षी यहां छह माह तक रहे थे। उसके पश्चात यह चले गए। उसके पश्चात वर्ष 2000 में विदेशी पक्षी यहां पर फिर पहुंचे थे।
प्रजनन के पश्चात ये पक्षी अपने देश लौट जाते थे। आम तौर पर जनवरी से अप्रेल के अंत तक पक्षी आते थे। पक्षी तालाबों के आस-पास पेड़ों पर घोंसला बनाते थे। विदेशी पक्षियों के साथ यहां के गांव वालों का भावनात्मक रिश्ता था। मगर सूखे के कारण यहां के निवासी विदेशी पक्षियों के साथ रिश्ते की भावनात्मक अनुभूति नहीं कर पा रहे हैं।