सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल करीब 35 लाख टन प्लास्टिक अपशिष्ट का उत्पादन होता है। पिछले साल यह ३४.६९ लाख टन था। इसमें से सिर्फ १५.८ लाख टन ही रिसाइकल हुआ और करीब १.६७ लाख टन का उपयोग सीमेंट भट्टियों में हुआ। प्लास्टिक अपशिष्ट में हर साल करीब २२ प्रतिशत की वृद्धि हो रही है।
सरकार ने शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में स्वीकार किया कि प्लास्टिक प्रदूषण गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन गया है। यह स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
जानकारों का कहना है कि नियमों से ज्यादा उसका अनुपालन नहीं होना बड़ी चुनौती है। प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि हो रही है मगर उस अनुपात में इसके निस्तारण और प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे और निस्तारण सुविधा का विस्तार नहीं हुआ। दो साल पहले तक राज्यों से सही आंकड़े भी संग्रहित नहीं पा रहे थे। पिछले साल जारी सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वाइरन्मन्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ६६ प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट सिर्फ सात राज्यों-महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में निकलता है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रति व्यक्ति प्रतिदिन प्लास्टिक अपशिष्ट का उत्पादन ७.६ ग्राम है। दिल्ली और गोवा में यह राष्ट्रीय औसत से पांच-छह गुणा तक ज्यादा है।
कर्नाटक सहित कई राज्यों में सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध है। लेकिन, यह पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रहा है। सरकार की वर्ष २०१८ की घोषणा के मुताबिक इस साल सितम्बर तक ५० माइक्रोन से कम वाले सिंगल यूज प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग बंद हो जाना था। ऐसे बाकी उत्पादों का उपयोग अगले साल के अंत तक बंद होना है। मगर समय-सीमा खत्म होने के बावजूद प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। पर्यावरणविदें का कहना है कि स्थानीय निकायों और प्रदूषण नियंत्रण संस्थाओं की उदासीनता भी इसका कारक है। पांच साल पुराने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों में इस साल अगस्त में बदलाव किए जाने के बाद उत्पादकों पर भी निस्तारण को लेकर जिम्मेदारियां बढ़ी हैं मगर यह भी कागजों पर ही सिमटा है।
कुछ राज्यों में प्लास्टिक अपशिष्ट का सड़क निर्माण में भी सीमित उपयोग होता है। सार्वजनिक उपक्रम एनटीपीसी के साथ ही कुछ अन्य उपक्रम प्लास्टिक अपशिष्ट का उपयोग बिजली बनाने के लिए भी कर रहे हैं। तमिलनाडु में सरकार ने राज्य को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए बॉयबैक योजना शुरू की है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) अगले तीन साल में देश के १०० शहरों में प्लास्टिक प्रबंधन कार्यक्रम क्रियान्वित करेगा। यह कार्यक्रम २०१८ में शुरू हुआ था मगर कोरोना कारण स्थगित हो गया था। इसके तहत अभी तक ८३ हजार मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र किया गया है।
वर्ष मात्रा
२०१५-१६ १५,८९,३९२
२०१६-१७ १५,६८,७३३
२०१७-१८ ६,६०,७६०
२०१८-१९ ३३,६०,०४३
२०१९-२० ३४,६९,७८०
मात्रा टन में योजनाबद्ध तरीके से करें काम
सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर रोक को प्रभावी तरीके से लागू करने के साथ ही निस्तारण की व्यवस्था जरूरी है। नियमों को सही तरीके से लागू कराया जाए तो समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। इसके लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक योजना बनाकर काम करने की जरूरत है।
भारती एस, पर्यावरणविद्
प्लास्टिक मुक्त जीवन अभी कई लोगों के लिए आसान नहीं है। मगर अगर सरकार योजनाबद्ध तरीके से काम करे तो इसके उपयोग को कम किया जा सकता है। सबसे बड़ी है चुनौती है प्लास्टिक के किफायती विकल्प उपलब्ध कराना। निस्तारण पर भी फोकस करना होगा।
– श्रेष्ठा एनजी, पर्यावरणविद्