दरअसल बच्चों के स्वास्थ्य जांच के लिए प्रदेश सरकार ने आरोग्य नंदन परियोजना चला रखी है। इसके तहत राज्य में डेढ़ करोड़ बच्चों को जांचने का लक्ष्य है। 23 अगस्त से 15 सितंबर तक जांचे गए 53,82,106 बच्चों में से 1,15,660 बच्चे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। 7,259 बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार निकले। 1,05,150 बच्चों में मध्यम तीव्र कुपोषण था, 1,759 को मधुमेह था, 150 को पुरानी जिगर की बीमारी थी, 371 को पुरानी फेफड़ों की बीमारी थी, 585 को गुर्दे की विफलता थी, 338 को रक्त विकार था और 48 को कैंसर था।
बीमार बच्चों की सूची में रायचूर जिला सबसे ऊपर है। इस जिले में मधुमेह पीडि़त बच्चों की संख्या 1,447 निकली। चिकमगलूरु जिले में 55 बच्चे पुरानी जिगर की बीमारी से पीडि़त हैं, कलबुर्गी जिले में 109 बच्चों को पुरानी फेफड़ों की बीमारी है, यादगीर जिले में थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसे रक्त विकार से पीडि़त 48 बच्चे हैं। हावेरी जिले में 14 बच्चों का कैंसर का उपचार हो रहा है।
रायचूर आगे, बेंगलूरु शहर पीछे
अभी तब बेलगावी जिले में सर्वाधिक 14,04,414, हावेरी जिले में 7,59,156 और कोप्पल जिले में 4,03,354 बच्चों की जांच हो हुई है। बेंगलूरु शहर में जांच प्रक्रिया की रफ्तार कम है। बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका ने अभी तक 25,467 बच्चों की ही जांच की है।
यह है कारण
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सोमशेखर के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान बच्चों में टाइप-1 मधुमेह के मामलों में वृद्धि हुई है। इसमें प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं पर हमला करती है। प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। माना जाता है कि श्वसन संक्रमण अग्न्याशय के इंसुलिन उत्पादक बीटा कोशिकाओं के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली की सक्रियता को ट्रिगर करता है, जिसके परिणामस्वरूप मधुमेह होता है।