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बैंगलोर

विशिष्टता को पहचानें और उसका सम्मान करें-साध्वी भव्यगुणाश्री

धर्मसभा का आयोजन

बैंगलोरJul 01, 2022 / 07:37 am

Yogesh Sharma

विशिष्टता को पहचानें और उसका सम्मान करें-साध्वी भव्यगुणाश्री

विशिष्टता को पहचानें और उसका सम्मान करें-साध्वी भव्यगुणाश्री

बेंगलूरु. नाकोड़ा पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ राजाजीनगर के लूणिया भवन में विराजित साध्वी भव्यगुणाश्री ने कहा कि अपनी विशिष्टता को पहचानें और उसका सम्मान करें। सफलता एक दिन आपके कदम चूमेंगी
लोगो की निंदा से परेशान होकर अपना रास्ता मत बदलना, क्योंकि सफलता शर्म से नहीं साहस से मिलती है। उन्होंने कहा कि पिता के घराने का अभिमान करना कुलमद है। अपने नाना-मामा के वंश का अभिमान करना जातिमद है। अपने शरीर की सुंदरता का घमंड करना रूपमद है। अपने ज्ञान का अभिमान प्रकट करना ज्ञानमद है। अपनी धन-सम्पत्ति का घमंड करना धनमद है। अपने शरीर के बल का अभिमान करना बलमद है। अपनी तपस्या का घमंड करना तपमद है। अपने शासन अधिकार का अभिमान करना अधिकारमद है।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म पूर्णत: अहिंसा पर आधारित है। जैन धर्म में जीवों के पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार के कीड़े एवं सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते हैं, वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-फिरने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। अत: इन जीवों को परेशानी ना हो और जैन साधुओं द्वारा हिंसा ना हो इसलिए चातुर्मास में जैन साधु साध्वी चार महीने एक ही स्थान पर रहकर धर्म आराधना, संयम साधना एवं जन जन के आत्म कल्याण के लिए प्रेरक प्रवचन देते हैं। इस दौरान जैन साधु तप एवं जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को विशेष महत्व देते हैं। चातुर्मास पर्व का महत्व है। जैन धर्म के गुरु वर्ष भर पैदल चलकर भक्तों के बीच अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का विशेष ज्ञान बांटते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख संवत्सरी महापर्व 8 दिवसीय पर्युषण पर्व आराधना के साथ मनाया जाता है। जो जैन अनुयायी वर्ष भर में जैन धर्म की विशेष मान्यताओं का पालन नहीं कर पाते वह इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप -तप, मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। साथ ही चार महीने तक एक ही स्थान पर रहकर धर्म-ध्यान-साधना करने, प्रवचन देने आदि से कई युवाओं का मार्गदर्शन होता है। चातुर्मास स्वयं को समझने और अन्य प्राणियों को अभयदान देने का अवसर माना जाता है।
कैलाश छाजेड़ ने बताया कि साध्वी शुक्रवार तक राजाजीनगर में विराजित रहेंगे। शनिवार को मंजुनाथ नगर पहुंचेगी। सोमवार को चिंतामणि पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ महालक्ष्मी लेआउट में चातुर्मास प्रवेश होगा।
उत्तमचंद आच्छा, किरण कुमार कुंकुलोल, शीतल कुमार, कैलाश छाजेड़, कल्पेश कुमार चोपड़ा, जैनम चोपड़ा, शांताबाई मांगीलाल लूणिया, मधु तातेड़, वीणा, ज्योति चोपड़ा उपस्थित रहे।
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