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बैंगलोर

पर्व के दिनों में बोलें कम, सुनें ज्यादा

सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर के प्रवचन

बैंगलोरSep 10, 2018 / 11:16 pm

Rajendra Vyas

dharmik pravacha

पर्व के दिनों में बोलें कम, सुनें ज्यादा

बेंगलूरु. सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने कहा कि कल्पसूत्र वह आचार सूत्र है, जो सूत्र में 24 तीर्थंकरों का जीवन चरित्र, गणधरवाद, परमात्मा महावीर से आज तक विशिष्ट प्रभावक आत्माओं का जीवन चरित्र और साधु का वर्णन इस महाग्रंथ में आता है। उन्होंने कहा कि पर्व के दिनों में हमें बोलना कम है और सुनना ज्यादा है। जो आराधक 21 बार कल्पसूत्र का भावपूर्ण श्रवण करता है उसका शीघ्र मोक्ष हो जाता है।
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माता-पिता का हम पर असीम उपकार
बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, हनुमंतनगर के तत्वावधान में साध्वी सुमित्रा ने ‘फादर मदर का करो आदरÓ विषय पर कहा कि माता-पिता का हम पर असीम उपकार है। जिन्होंने हमारी छोटी सी छोटी सुख सुविधा का भी ध्यान रखते हुए स्वयं भूखे प्यासे रहकर भी, हर प्रकार की दुख, परेशानी, पीड़ा को बिना किसी से कहे हमारी हर जरूरत को पूरा किया। उन्होंने कहा कि हमारे चेहरे पर खुशी देखने के लिए माता-पिता अपनी खुशियों, सुख-सुविधाओं, स्वास्थ्य की भी परवाह किए बिना अपना सर्वस्व कुर्बान कर देते हैं। बदले में माता-पिता यही उम्मीद रखते हैं कि बच्चे बड़े होकर उन्हें भी अपने जीवन के संध्याकाल में पूर्ण समर्पण, आदर, भक्ति-भाव से उनकी सेवा करें। साध्वी सुप्रिया ने अपूर्व क्षमाधारी क्षमा मूर्ति गजसुकुमाल के कथानक पर अंतगड़ सूत्र के माध्यम से प्रकाश डाला। साध्वी सुदीप्ति ने अंतगड़ दसा सूत्र का वाचन किया। मैसूरु सिद्धार्थनगर के नवयुवक मंडल ने सभा का लाभ लिया। मंत्री महावीरचंद धारीवाल ने स्वागत किया। संचालन उपाध्यक्ष अशोक कुमार गादिया ने किया।

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जीवन को नंदन वन बनाता है कल्पसूत्र
बेंगलूरु. शांतिनगर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ में आचार्य महेंद्र सागर सूरी ने कहा कि कल्पसूत्र ऐसा मंगल शब्द है जो शब्द से झरते मधुर झरने जीवन वन को नंदन वन बना देता है। उन्होंने कहा कि साधुओं के आचार का जिसमें विश£ेषण आता है वो कल्पसूत्र जैन साधुओं की आचार संहिता में गुंफित की गई है। जिसमें दिनचर्या, भिक्षाचर्या, जीवनचर्या इत्यादि का वर्णन किया गया है। जगत के भावों से निरपेक्ष बने साधु जीव को शिव बनाने में सहायता करते हैं।

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