अध्ययन दल के मुखिया व नेत्र रोग विशेष डॉ. किरण कुमार ने बताया कि बीएमअीआरआइ के नैतिक समिति की मंजूरी के बाद विक्टोरिया कोविड-19 अस्पताल में भर्ती 45 कोरोना पॉजिटिव मरीजों (35 पुरुष और 10 महिला) के नेत्र की आरटी-पीसीआर किट से जांच की गई। इनमें 13 मरीज असिंप्टोमेटिक थे। 24 वर्षीय एक असिंप्टोमेटिक मरीज के नेत्र स्वाब में कोरोना वायरस के आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) मिले। यानी नेत्र स्वाब से भी कोरोना वायरस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है लेकिन पॉजिटिविटि दर महज 2.2 फीसदी है।
अध्ययन दल में शामिल मिंटो आई अस्पताल की निदेशक व नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. बी. एल. सुजाता राठौड़ ने बताया कि अध्ययन के परिणामों के अनुसार असिंप्टोमेटिक लोगों के भी नेत्र स्वाब या आंसू वायरल लोड के वाहक हो सकते हैं। लेकिन वायरस कितना संक्रामक है इसका पता नहीं चला है। व्यापक शोध की जरूरत है। यदि वायरल लोड अधिक है तो संक्रमण की संभावनाएं भी हैं।
बीएमअीआरआइ की डीन डॉ. सी. आर. जयंती ने बताया कि आंखों से निकला संक्रमित तरल पदार्थ सतह पर गिरकर भी अनजाने में ही संक्रमण के प्रसार का कारण बन सकता है। वैसे भी चेहरे और आंखों को बार-बार छूने से बचना चाहिए। सभी चिकित्सकों व कर्मचारियों को उपचार संबंधित जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
क्या है स्थापित तथ्य
आम धारणा यह है कि छींकने या खांसने की वजह से पड़े छींटों (ड्रॉपलेट्स) के कारण कोरोना वायरस संक्रमण फैलता है। ड्रॉपलेट्स इंसान की सांस की नली से बाहर आते-जाते हैं। इस नली में म्यूकस की नर्म परत होती है। नली में हवा के आने जाने से यह परत टूटती है और अलग-अलग आकार के कण बाहर निकलते हैं। यदि व्यक्ति पहले ही से ही कोरोना वायरस से संक्रमित है तो इन कणों में वायरोन्स (वायरस के कण) भी चिपक कर बाहर आ जाते हैं। ड्रॉपलेट्स जितने बड़े होंगे उसमें वायरोन्स उतने ही ज्यादा होंगे। वायरोन्स किसी सतह पर जम जाएं तो भी संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं।