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बैंगलोर

साध्वी के जन्म दिन पर संघों ने प्रस्तुत की आदर की चादर

धर्मसभा का आयोजन

बैंगलोरSep 22, 2021 / 08:49 am

Yogesh Sharma

साध्वी के जन्म दिन पर संघों ने प्रस्तुत की आदर की चादर

साध्वी के जन्म दिन पर संघों ने प्रस्तुत की आदर की चादर

बेंगलूरु. जयनगर श्वेतांबर स्थानाक्वासी जैन श्रावक संघ ने विराजित साध्वी रिद्धिमा का आज 43वां जन्मदिन मनाया गया। राजस्थान से उपाध्याय रविंद्र मुनि, दिल्ली से रमणीक मुनि, देहरादून से राजेश मुनि, पुणे साध्वी हिमानी, सूरत से आचार्य शिव मुनि, यशवंतपुर से साध्वी राजमती, राजाजीनगर से साध्वी सुमित्रा, गणेश बाग से साध्वी रुचिकाश्री, रायचूर से साध्वी चंदना, डॉक्टर अक्षय ज्योति ने जन्म दिन पर शुभाशीष दिए। जयनगर संघ, चिकपेट शाखा, चिकपेट महिला मंडल, जयनगर महिला मंडल ने आदर की चादर समर्पित की। साध्वी रुचिकाश्री के यहां से आदर की चादर प्राप्त हुई। यशवंत पुरा में साध्वी के यहां से आदर की चादर प्राप्त हुई। महिला मंडल बालिका मंडल और बच्चों द्वारा अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई।
सीखे अपना लाइफ मैनेजमेंट-डॉ. दर्शनप्रभा
बेंगलूरु. गुरु ज्येष्ठ पुष्कर दरबार में विराजित साध्वी डॉ. समृद्धि ने कहा कि अपने आप से सवाल पूछो हू आई एम, मैं कौन हूं। मुझे कहां जाना है मैं यहां क्यों आया हूं अपने आपसे प्रश्न करना है सेल्फ ऑब्जरवेशन करना है। तभी हम जागृत रह सकते हैं। इस मानव भव का सार निकाल सकते हैं। इस दुनिया के अंदर महापुरुष हुए हैं होते रहेंगे और आगे भी होंगे जो होंगे उनको हम देख नहीं सकते है। उन्हें पहचानने की अंतर्दृष्टि चाहिए। डॉ. दर्शन प्रभा ने कहा इस दुनिया की रीत है कि मरने के बाद ही पूछती है। मरने के बाद हम हर महापुरुष की प्रतिमा बनाती हैं, मंदिर बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। जीते जी तो जिसे सूली पर चढ़ाते हैं महावीर के कानों में कीलें ठोकते हैं यह दुनिया भी गजब है। जब राम जी चले गए तो सारी दुनिया राम नाम का जप कर रही है पर जब वे थे तब लोग उनकी भी आलोचना करते थे। अब सीताराम सीताराम कर रहे हैं पर जब थे तब सीता पर अंगुली उठाते रहे। जब तक जीवित रहे तब तक उद्धव जैसे लोगों ने यह कहा कि कृष्ण गोपियों के पीछे पागल है लेकिन आज उन्हीं गोपियों राधा को याद कर कर के लोग अपनी जिव्हा को निर्मल करते हैं और अपने भावों के पापों को काटने उनके पुण्य प्रभाव का उपयोग करते हैं। मरने के बाद पूछना मनुष्य की पुरानी आदत है। यह अज्ञानता है लेकिन अज्ञानता का प्रदर्शन की वजह से ही वह मरने के बाद महापुरुषों की पूजा शुरु कर देती हैं।
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