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बैंगलोर

कितना फायदेमंद रहेगा सिद्धू का सियासी जोखिम

चामुंडेश्वरी में वापसी …

बैंगलोरApr 17, 2018 / 01:07 am

कुमार जीवेन्द्र झा

siddaramiah
बेंगलूरु. सियासी कयासों पर विराम लगाते हुए सत्तारुढ़ कांग्रेस ने आखिरकार मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या को सिर्फ एक सीट से ही चुनाव लडऩे की अनुमति दी। प्रतिकूल राजनीतिक समीकरण और विपक्ष की घेराबंदी के कारण सिद्धू दो सीटों से लडऩा चाहते थे लेकिन पुराने कांग्रेसी नेताओं के विरोध के कारण आलाकमान ने सिद्धू को सिर्फ एक सीट से चुनाव लडऩे के लिए राजी किया। सिद्धू के विरोधियों का तर्क था कि अगर मुख्यमंत्री दो सीटों से उतरेंगे तो यह युद्ध से पहले ही हथियार डालने वाली स्थिति होगी और इससे विपक्ष को बढ़त मिलेगा।
सिद्धू अब मैसूरु जिले की उसी चामुंडेश्वरी क्षेत्र से किस्मत आजमाएंगे जहां से उन्होंने 1983 में पहली बार विधायक बनकर राजनीतिक सफर शुरु किया था। सिद्धू 5 बार यहां से जीते लेकिन इस बार का मुकाबला उनके लिए बिल्कुल अलग होगा। सिद्धू 12 साल बाद इस क्षेत्र में लौटे हैं, बीच में दो बार वे पड़ोस की वरुणा से विधायक रहे जहां से अब उनके बेटे डॉ यतींद्र मैदान में हैं। दूसरी तरफ, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा का नेतृत्व वाला जनता दल (ध) और भाजपा चामुंडेश्वरी में सिद्धू को हराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सिद्धू के सामने जद (ध) के विधायक जी टी देवेगौड़ा मैदान में होंगे लेकिन उनका असली मुकाबला देवेगौड़ा और उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी से होगा। भाजपा का इस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव नहीं है।
विरोधी के साथ असंतुष्ट भी समस्या
राजनीतिक हलकों में इसे सिद्धरामय्या और कांग्रेस का जानबूझकर लिया गया सियासी जोखिम माना जा रहा है। विरोधियों के साथ सिद्धू को अपनी ही पार्टी के उन असंतुष्टों से भी जूझना पड़ेगा,जो उनके पार्टी में उनके कद या अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। हालांकि, सिद्धू अपनी जीत को लेकर आशावान हैं।

तब गर्दिश में थे सितारे, अब सीएम हैं
हालांकि, 12 साल पहले और आज के सिद्धरामय्या की स्थिति अलग है। तब जद (ध) बाहर से होने के बाद सिद्धरामय्या कांग्रेस में अपनी जगह बनाने के लिए जूझ रहे थे और अब मुख्यमंत्री के तौर पर उस क्षेत्र के मतदाताओं के पास लौटे हैं जहां उसे उनका राजनीतिक पुनर्जन्म हुआ था। सिद्धू और उनके समर्थकों की उम्मीद भी इसी बात पर टिकी है। सिद्धू कहते हैं कि इस बार यहां जद (ध) का जातीय गणित नहीं चलेगा। उनके समर्थका का है तर्क है कि अगर सिद्धू जीतते हैं और कांग्रेस की दुबारा सरकार बनती है तो उनका मुख्यमंत्री बनना तय है लेकिन अगर जी टी देवेगौड़ा जीतेंगे तो वे सिर्फ विधायक या गठबंधन सरकार बनने पर मंत्री बन पाएंगे। इसलिए मतदाता जाति के बजाय ‘उम्मीदोंÓ पर मतदान करेंगे। हालांकि, जी टी देवेगौड़ा कहते हैं कि सिद्धू को 12 साल तक इस क्षेत्र की याद नहीं आई जबकि मैं हर पल जनता के बीच रहा। मुख्यमंत्री होने के बावजूद सिद्धू की राह आसन नहीं होगी। सिद्धू को भी इसका अहसास है और लोगों का दिल जीतने के लिए वे गांव-गांव का दौरा कर रहे हैं। क्षेत्र में प्रचार के दौरान कई बार लोगों ने सिद्धरामय्या को विकास के मसले पर घेरा तो उन्होंने मौजूदा विधायक जी टी देवेगौड़ा को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की लेकिन लोगों ने कहा कि मुख्यंत्री के तौर पर आप विशेष कोष जारी कर सकते थे।

वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में सिद्धरामय्या देवेगौड़ा की पार्टी जद (ध) के टिकट पर 32,345 मतों से जीते थे लेकिन दो साल बाद जब कांग्रेस में शामिल होने के बाद जब उपचुनाव में उतरे तो महज 257 मतों से ही भाजपा-जद (ध) उम्मीदवार को हरा पाए। यह उनकी जीत के सबसे कम अंतरों में था। उस वक्त कुमारस्वामी मुख्यमंत्री थे और सिद्धू को हराने के लिए आक्रामक प्रचार भी किया था। वर्ष 2004 में बसपा ने चामुंडेश्वरी में उम्मीदवार उतारा था और उसे 9700 मत मिले थे लेकिन उपचुनाव में बसपा का नहीं उतरना सिद्धू के लिए फायदेमंद साबित हुआ था। इस बार बसपा का गठजोड़ जद (ध) के साथ है और इस कारण दलित मतदाताओं का रूख काफी महत्वपूर्ण होगा। करीब 2.5 लाख मतदाताओं वाले अद्र्ध शहरी क्षेत्र चामुंडेश्वरी में 70 हजार वोक्कालिगा, 30 हजार लिंगायत और 1.20 लाख अहिंदा मतदाता हैं। पिछले चुनाव में जद ध को 75,864 मत मिले जबकि कांगे्रस को 68 हजार 761, केजेपी को 16 हजार 799, भाजपा को 8 हजार 308 मत मिले थे। राजनीतिक भविष्य और प्रतिष्ठा दांव पर होने के बावजूद सिद्धू की समस्या है कि पार्टी के स्टार प्रचारक होने के कारण उन्हें सभी 30 जिलों पर ध्यान देना है। ऐसे में चामुंडेश्वरी के साथ ही बेटे की मदद के लिए वरुणा में ज्यादा वक्त देना उनके लिए चुनौतीपूर्ण है। सिद्धू इसे अपना आखिरी चुनाव बता रहे हैं लेकिन अब जनता 2006 को दुहराती है या 1989 या 1999 को, यह 15 मई को मालूम चलेगा।
गुंडूराव की नजीर देकर किया राजी
पार्टी सूत्रों के मुताबिक सिद्धरामय्या को दो सीटों से चुनाव नहीं लडऩे के लिए कांग्रेस आलाकमान ने उनके सामने पूर्व मुख्यमंत्री आर गुंडूराव का नजीर रखा। पार्टी सूत्रों के मुताबिक १९८३ के विधानसभा चुनाव में गुंडूराव ने दो जगहों- कोडुगू जिले के सोमवारपेट और तत्कालीन गुलबर्गा जिले के चित्तापुर से नामांकन पत्र दाखिल किया था। पार्टी ने उन्हें सिर्फ एक जगह से चुनाव लडऩे के निर्देश दिए। पार्टी अध्यक्ष और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश को मानते हुए गुंडूराव ने अंतिम क्षणों में चित्तापुर से नाम वापस ले लिया और सिर्फ सोमवारपेट से मैदान में उतरे। सोमवारपेट में गुंडूराव जनता पार्टी के उम्मीदवार बी ए जिविजय से हार गए। दरअसल, सिद्धू के कुरुबा बहुल बागलकोट जिले के बादामी से टिकट मांगने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जी परमेश्वर ने तुमकूरु के कोरटगेेरे के अलावा बेंगलूरु की पुलकेशीनगर से टिकट मांगा था। कई बड़े नेता दो जगहों से टिकट दिए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि यह गलत परंपरा होगी और पार्टी को भी फायदा नहीं होगा।
मतदाता तय करेंगे भविष्य, कुमार नहीं
मैसूरु. मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने सोमवार को कहा कि चामुंडेश्वरी विधानसभा क्षेत्र में उनके भविष्य का फैसला मतदाता करेंगे, जद ध के प्रदेश अध्यक्ष एच डी कुमारस्वामी नहीं। कुमारस्वामी पर हमला बोलते हुए सिद्धरामय्या ने कहा कि चामुंडेश्वरी के मतदाता कुमारस्वामी की जेब में नहीं हैं कि वे बार-बार दावा कर रहे हैं कि मैं हार जाऊंगा। सिद्धरामय्या ने कहा कि वर्ष २००६ में भी कुमारस्वामी ने उपचुनाव में मेरे खिलाफ प्रचार किया था लेकिन मैं जीता था। अपनी जीत का दावा करते हुए सिद्धरामय्या ने कहा कि इस बार भी २००६ का नतीजा ही दोहराएगा। सिद्धरामय्या ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में कोई भी ऐसा बयान नहीं दे सकता है। सिद्धरामय्या ने सवालिया लहजे में कहा कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोइली के खिलाफ लडऩे पर चुनाव नहीं हारे थे। सिद्धू ने कहा कि वे उन्होंने कभी नहीं कहा था कि वे बादामी से भी चुनाव लड़ेंगे। सिद्धू ने कहा कि वे २० अप्रेल को चामुंडेश्वरी से नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। सिद्धरामय्या ने सोमवार को लिंगमबुद्धिपाल्या में पांच दिवसीय प्रचार अभियान की शुरुआत की।

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