उन्होंने बताया कि सूर्य के धब्बे इसलिए हैं कि क्योंकि वहां शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के कारण तप्त गैसों का बहाव बेहद नियंत्रित रहता है। चूंकि, यहां तापमान लगभग 4 हजार डिग्री रहता है और इनकी रोशनी में तेजी ना होने के कारण यह स्थान काले धब्बों सरीखे दिखते हैं। लेकिन, यही स्थान सूर्य की सक्रियता के परिचायक भी हैं। सूर्य के धब्बों से संबंधित सूर्य की अनेक अल्पकालिक घटनाएं हमें देखने को मिलती हैं। जैसे सौर ज्वालाएं अथवा उच्च ऊर्जा वाले कणों के तूफान जो कभी कभार पृथ्वी पर भी अपना प्रभाव दिखाते हैं।
प्रोफेसर कपूर ने बताया कि सूर्य के धब्बों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है और इससे हम सूर्य की सक्रियता का अनुमान लगाते हैं। इस सक्रियता का 11 वर्ष का काल है और इसी दौरान सौर धब्बों की संख्या एक अधिकतम तक जा पहुंचती है और फिर घटने लगती है। इस 11 वर्ष के इस सक्रिय काल को सौर चक्र कहा जाता है। सौर चक्र का अध्ययन वैज्ञानिक 18 वीं शताब्दी के मध्य से कर रहे हैं। सौर चक्र-24 कुछ समय पहले खत्म हो हुआ है और वैज्ञानिक सौर चक्र-25 के शुरू होने के इंतजार करते रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही सूर्य की सतह पर एक धब्बा नजर आनेे लगा है जो वैज्ञानिकों के अनुसार सौर चक्र-25 की शुरुआत का संदेश देता है।