इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक फिलहाल जनवरी के पहले सप्ताह में मिशन लांच करने को ध्यान में रखकर तैयारियां चल रही हैं। चंद्रयान-2 मिशन की व्यापक समीक्षा करने वाली राष्ट्रीय समिति ने यह माना कि बिना कुछ सुधार किए रोवर सहित भारी लैंडर को चांद की धरती पर उतारना मुश्किल होगा। चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए मिशन में कई सुधार आवश्यक हैं। इसके बाद चंद्रयान-2 की टीम ने कुछ अतिरिक्त इलेक्ट्रोनिक पैकेज जोड़ दिए साथ ही लैंडर में एक अतिरिक्त तरल इंजन भी लगाने का प्रस्ताव रखा गया।
इन सबके चलते चंद्रयान-2 का वजन लगभग 6 00 किलोग्राम और बढ़ जाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक मिशन सिक्वेंस पर भी पुनर्विचार किया गया और कुछ नए परीक्षण भी करने की सलाह दी गई। इन तमाम परीक्षणों और नए फीचर जोडऩे के बाद मिशन तय समय पर लांच करना असंभव है। इस बीच अतिरिक्त वजन बढऩे के बाद मिशन को जीएसएलवी मार्क-2 की जगह जीएसएलवी मार्क-3 से लांच करने की योजना बनी है। पहले चंद्रयान-2 का कुल वजन 3250 किलोग्राम था जो अब लगभग 38 50 किलोग्राम हो जाएगा। इसमें लैंडर का वजन जो पहले 1250 किलोग्राम था अब लगभग 1350 किलोग्राम हो जाने की उम्मीद है। वहीं रोवर के सभी छह पहियों का वजन भी बढ़ेगा। पहले प्रत्येक पहियों का वजन 20 किलोग्राम था, जो अब 25 किलोग्राम हो जाएगा। पे-लोड का अतिरिक्त वजन बढऩे के साथ ही ईंधन भी बढ़ेगा।
हालांकि, जीएसएलवी मार्क-2 का उन्नत संस्करण भी चंद्रयान-2 को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने की योग्यता रखता है लेकिन इसरो अब इसे जीएसएलवी मार्क-3 से छोडऩे की योजना बना रहा है। इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले तय हुआ था कि जीएसएलवी मार्क-2 को उन्नत कर उससे ही चंद्रयान-2 लांच किया जाए। लेकिन, जीएसएलवी मार्क-2 को उन्नत कर परीक्षण उडाऩ में ही चंद्रयान-2 भेजने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता। इसलिए जीएसएलवी मार्क-3 से मिशन लांच करना तय हुआ है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद की धरती पर सॉफ्ट लैंडिंग एक बड़ी चुनौती है। मिशन के तहत एक आर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर भेजा जाएगा। आर्बिटर चांद की कक्षा में 100 किमी गुणा 100 किमी वाली कक्षा में चक्कर काटेगा जबकि लैंडर उससे निकलकर चांद की धरती पर उतरेगा। फिर लैंडर से रोवर निकलेगा जो चांद की धरती पर चहलकदमी करते हुए प्रयोगों को अंजाम देगा। चुनौती यह है कि आर्बिटर चांद की कक्षा में लगभग 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर काटेगा और उसी रफ्तार पर लैंडर को निकलकर चांद की धरती पर सॉफ्ट लैंड करना है। आर्बिटर से लैंडर के निकलने और चांद की सतह तक उसके पहुंचने दौरान कोई संपर्क स्थापित नहीं होगा। इन तमाम चुनौतियों को ध्यान में रखकर पूरे मिशन की फिर से समीक्षा की गई जिसके बाद कुछ अहम बदलाव किए गए हैं।