राज्यों में पहले ही आइएएस और आइपीएस अधिकारियों की कमी है। हर साल सिर्फ 180 नए आइएएस अधिकारी ही नियुक्त होते हैं और राज्यों को मुश्किल से 3-4 अधिकारी हर साल मिलते हैं। लोकसभा में 3 मार्च 202१ को केंद्र सरकार के दिए जवाब के मुताबिक देश में आइएएस अधिकारियों के स्वीकृत 6715 पदों में से 1510 पद रिक्त थे।
प्रस्तावित संशोधनों को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी काफी मुखर हैं। वे दो बार प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ ही एनडीए शासित कई राज्य भी विरोध जता चुके हैं। एनडीए शासित बिहार ने भी मौजूदा व्यवस्था को ही उपयुक्त बताया है। केरल और तमिलनाडु भी विरोध कर चुके हैं।
केंद्र का तर्क है कि राज्य प्रतिनियुक्ति पर पर्याप्त अधिकारियों को नहीं भेज रहे हैं। केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011 में 309 आइएएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) में थे मगर अब इनकी संख्या घटकर 223 रह गई है। पिछले 7 साल में उपसचिव व निदेशक स्तर के अधिकारियों की संख्या 621 से बढ़कर 2021 में 1130 हो गई मगर प्रतिनियुक्त अधिकारियों की संख्या 117 से घटकर 114 रह गई। कर्नाटक कैडर के 267 आइएएस अधिकारियों में से 18 अभी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।
केंद्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 20 दिसम्बर को प्रस्तावित संशोधन को लेकर राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा था और इसके बाद 27 दिसम्बर, 6 और 12 जनवरी को राज्यों को स्मार पत्र (रिमाइंडर) भेजा गया है। राज्यों से 25 जनवरी तक राय मांगी गई है।
एआइएस अधिकारियों को सेवा कैडर (राज्य या छोटे राज्यों के समूह) आवंटित किया जाता है। अगर कोई एआइएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का विकल्प चुनता है तो उसके नाम पर तभी विचार किया जाएगा जब राज्य की अनापत्ति हो। कैडर के स्वीकृत पदों के 40 प्रतिशत से ज्यादा सीडीआर नहीं हो सकता है।
प्रस्तावित संशोधनों के मुताबिक केंद्र किसी अधिकारी को कभी भी प्रतिनियुक्ति पर बुला सकता है। इसमें राज्य या अधिकारी की सहमति की भूमिका नगण्य होगी क्योंकि किसी विवाद की स्थिति में केंद्र का निर्णय अंतिम होगा। राज्यों को निश्चित समयावधि में उक्त अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए मुक्त करना होगा। राज्यों के ना कहने का अधिकार खत्म हो जाएगा।
केंद्र-राज्यों के बीच तकरार में अक्सर एआइएस अधिकारी निशाने आते हैं। पिछले साल केंद्र ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ए. बंदोपाध्याय को केंद्र प्रतिनियुक्ति पर आने का आदेश दिया मगर राज्य सरकार ने मुक्त नहीं किया। इसी तरह 2011 में तमिलनाडु में जयललिता सरकार ने तीन आइपीएस को प्रतिनियुक्ति पर भेजने सेे मना कर दिया था।
प्रस्तावित संशोधन संविधान के संघात्मक अवधारणा के खिलाफ है। जब राज्यों का अधिकारियों पर अधिकार ही नहीं रहेगा तो फिर काम कैसे होगा? केंद्र सरकार राज्यों की चुनी हुई सरकारों पर परोक्ष नियंत्रण के लिए इस संशोधन को लाना चाहती है। कर्नाटक सहित राज्यों को इसका विरोध करना चाहिए।
– सिद्धरामय्या, नेता प्रतिपक्ष, कर्नाटक विधानसभा