इसके साथ ही यह युद्धक विमान पूरी तरह लड़ाकू योग्यता हासिल कर चुका है। अब इसमें हथियारों के इंटीग्रेशन का रास्ता साफ हो गया है और इसे वायुसेना के ऑपरेशनल यूनिट में तैनाती की जा सकेगी। इससे पहले वायुसेना के बेड़े में तेजस को नंबर-45 स्क्वाड्रन के तौर पर शामिल किया गया और इसे फ्लाइंग डैगर्स नाम दिया गया।
तेजस का विकास करने वाली रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला वैमानिकी विकास एजेंसी (एडीए) ने यहां एयरो इंडिया शो से पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ को अंतिम परिचालन मंजूरी से जुड़े दस्तावेज सौंप दिए।
तेजस को एफओसी दिए जाने के बाद वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ ने कहा कि एक युद्धक विमान को जैसा होना चाहिए, यह वैसा है। पोखरण में वायु शक्ति सैन्य अभ्यास के दौरान इस विमान ने हवा से हवा और हवा से जमीन पर सटीकता से लक्ष्य भेद अपनी ताकत और उपयोगिता साबित की है। डीआरडीओ ने इसे देश के एयरोनॉटिकल इंजीनियरों के लिए अविस्मरणीय दिन बताया।
वायुसेना की घटती स्क्वाड्रन क्षमता को देखते हुए तेजस को एफओसी दिया जाना काफी अहम है। वायुसेना की स्क्वाड्रन क्षमता 42 होनी चाहिए जो घटकर 31 स्क्वाड्रन रह गई है। अंतिम परिचालन मंजूरी के लिए आवश्यक मिड-एयर-रिफ्यूलिंग (हवा में उड़ान भरते समय ईंधन भरना) प्रक्रिया पहले ही पूरी कर ली गई थी। तेजस एलएसपी-8 में पहले ही प्रयास में 20 हजार फीट की ऊंचाई पर 1900 किलोग्राम ईंधन भरा गया।
इसके बाद वायुसेना के टैंकर विमान आईएल-78 ने अब तेजस में 2700 किलोग्राम ईंधन भरने में सफलता हासिल की, जबकि तेजस की कुल ईंधन क्षमता 4 हजार किलोग्राम है।
इसके अलावा तेजस ऑटो-लो-स्पीड-रिकवरी (एएलएसआर) उड़ान सहित अन्य आवश्यक तकनीकों से सुसज्जित हो चुका है और अपने वर्ग में एक शानदार युद्धक बन चुका है। एफओसी मिलने से एचएएल को भी राहत मिली है, क्योंकि वह प्रारंभिक परिचालन मंजूरी (आईओसी) स्तर के 16 तेजस तैयार करने के बेहद करीब है। एफओसी मिल जाने से एचएएल को ‘बिना काम’ के बैठना नहीं पड़ेगा, क्योंंकि एफओसी मानक के विमानों का उत्पादन शुरू हो जाएगा।