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बैंगलोर

तेजस को स्थायी अड्डा मिला पर एफओसी का इंतजार

फिर टूटी एफओसी हासिल करने की समय-सीमा

बैंगलोरJul 10, 2018 / 11:12 pm

Rajendra Vyas

Tejas

तेजस को स्थायी अड्डा मिला पर एफओसी का इंतजार

बेंगलूरु. स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस का बेड़ा स्थायी तौर पर कोयम्बटूर के सुलूर वायुसैनिक अड्डे पर स्थानांतरित हो गया है लेकिन इस युद्धक के लिए अंतिम परिचालन मंजूरी (एफओसी) हासिल करने की समय-सीमा फिर टूट गई है। दिसम्बर 2015 में प्रारंभिक परिचालन मंजूरी (आईओसी) मिलने के बाद पिछले दो वर्षों से सरकार बार-बार कह रही थी कि जून 2018 तक तेजस को एफओसी मिल जाएगा लेकिन फिर एक बार स्वदेशी युद्धक इसमें नाकाम रहा है।
तेजस परियोजना को वर्ष 198 3 में ही मंजूरी मिली थी और 1 जुलाई 2016 को उसे वायुसेना के बेड़े में नंबर-45 फ्लाइंग डैगर्स के नाम से शामिल किया गया। केवल दो तेजस के साथ गठित बेड़े में अब 9 विमान हैं। लेकिन, लगातार बढ़ते परियोजना लागत और ऑपरेशनल चिंताओं के बीच एकल इंजन वाले इस हल्के युद्धक को अभी तक अंतिम परिचालन मंजूरी नहीं मिल पाई है। रक्षा सूत्रों के अनुसार कुल 123 तेजस विमानों के विकास और उत्पादन की लागत 75 हजार करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है जबकि अभी तक प्रारंभिक परिचालन मंजूरी स्तर के सिर्फ 9 विमानों की ही आपूर्ति हो पाई है।
वायुसेना में विमानों की घटती स्क्वाड्रन क्षमता के कारण इस स्वदेशी युद्धक की तत्काल और सख्त जरूरत है। भारतीय वायुसेना के लिए 42 स्क्वाड्रन (प्रत्येक स्क्वाड्रन में 18 से 20 युद्धक) युद्धक मंजूर हैं लेकिन उसकी क्षमता घटकर 31 स्क्वाड्रन हो चुकी है। हालांकि, केंद्र सरकार ने युगल इंजन वाले अत्याधुनिक 36 फ्रांसीसी युद्धक राफाल खरीदने के लिए करार किया है लेकिन मिग-21 और मिग-27 के 10 स्क्वाड्रन विमानों के बेड़े से अलग होने वाले हैं। ऐसे में वायुसेना की घटती क्षमता को बनाए रखने के लिए स्वदेशी युद्धक तेजस बेहद आवश्यक है।
रक्षा सूत्रों के मुताबिक तेजस परियोजना की उपलब्धियां शानदार रही हैं और इस युद्धक ने काफी प्रभावित किया है लेकिन फिर भी कई सुधार आवश्यक हैं। इस विमान का उत्पादन करने वाली सर्वाजनिक क्षेत्र की विमान निर्माता कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) अभी भी हर साल 16 तेजस के उत्पादन लक्ष्य से पीछे है। तेजस मार्क-1ए के लिए वायुसेना ने 8 3 तेजस का आर्डर दिया है लेकिन इसके लिए 43 सुधार आवश्यक है। रक्षा विभाग लगभग 50 हजार करोड़ की इस परियोजना की समीक्षा कर रही है।

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