scriptकामना का भाव साधना की सिद्धि में बाधक: मुनि सुधाकर | The feeling of desire hinders the attainment of spiritual practice | Patrika News
बैंगलोर

कामना का भाव साधना की सिद्धि में बाधक: मुनि सुधाकर

हनुमंतनगर में प्रवचन

बैंगलोरNov 24, 2020 / 10:04 pm

Santosh kumar Pandey

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बेंगलूरु. मुनि सुधाकर ने हनुमंतनगर स्थित तेरापंथ भवन में प्रवचन में कहा कि आत्मावान को पर्याय, परिवार, ज्ञान, तप, लाभ व पूजा और सत्कार के लाभ के अभिमान से बचना चाहिए।

अभिमान पतन का कारण है। साधना के साथ कामना का भाव साधना की सिद्धि में बाधक बन जाता है। पर्याय से भी अधिक साधना का महत्व होता है। मुनि ने कहा कि ज्ञान का मिथ्या अभिमान ज्ञान को भी अज्ञान में बदल देता है। ज्ञान को बंधन का नहीं मुक्ति का निमित्त बनाएं।
मुनि ने तप लाभ की विवेचना करते हुए कहा कि तपस्या आत्मदर्शन के लिए हो, प्रदर्शन के लिए नहीं, तप के साथ नाम ख्याति प्रतिष्ठा व प्रदर्शन की भावना जुड़ जाती है तो तपस्या भी अपना सही अर्थ को खो देती है।
मुनि ने कहा कि साधु को पूजा, सत्कार और सम्मान की अवस्था में भी साम्योग रखना चाहिए। चिंतन रहे कि यह पूजा और सत्कार मेरा नहीं मेरे चरित्र आचरण और साधुत्व का है। जो आत्मस्थ है, वही आत्मवान है, जो शांत है वही संत है, जो मौन है, वही मुनि है।

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