जब तक घर-परिवार, करीबी रिश्तेदारों में दुख-तकलीफ का माहौल रहता है, तब तक हम सुखी कैसे रह सकते हैं? हमारे सुख का स्तर तो इनसे प्रभावित होगा। फिर सुख की बागडोर अपने हाथों में कैसे ली जाए।
उपरोक्त विचार आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने जयनगर जैन संघ में प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि सचाई यह है कि जब भी हम सुखों को कर्म से हटाकर प्राप्ति या फल पर टिका देते हैं, वहीं पर सुख अस्थायी हो जाता है।
सुखों की अनुभूति को प्राप्ति या फल से हमने कुछ इस तरह जोड़ दिया है कि हमारे धर्म ग्रंथों में कल्पतरु, कामधेनु की कल्पना की गई है, जो प्रत्येक इच्छा को तत्काल पूर्ण करने में समर्थ हैं। सच यह है कि सुख कोई फास्टफूड की तरह नहीं है, जहां सब कुछ तुरंत मिल जाए। सुख हमेशा आंतरिक है और उसकी चाबी आपके पास है।