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बैंगलोर

गिले शिकवे दूर करने में सहायक रहा लॉकडाउन

महिलाओं ने बताए अपने अनुभवबच्चों ने सीखा बहुत कुछ

बैंगलोरMay 29, 2020 / 04:18 pm

Yogesh Sharma

गिले शिकवे दूर करने में सहायक रहा लॉकडाउन

गिले शिकवे दूर करने में सहायक रहा लॉकडाउन

बेंगलूरु. कोविड 19 के चलते देशभर में घोषित लॉकडाउन ने अपनों से मिलाने में बहुत मदद की है। जहां पहले महीनों तक अपनों से बात नहीं हो पाती थी। लॉकडाउन अवधि में सप्ताह में एक से दो बार वीडियो कॉल पर बात होने लगी। यहां तक कि गिले शिकवे भी दूर करनेे में सहायक रहा है लॉकडाउन। इस दौरान अमूमन हर घर में महिलाओं ने कुछ न कुछ नया सीखा है। बच्चों ने पुराने सामान को नए रूप में परिवर्तित कर क्रिएटिविटी भी प्रदर्शित की है।
शेषाद्रीपुरम निवासी कंचन भंडारी ने कहा कि लॉकडाउन में भाग दौड़ पर थोड़ा विराम लगा है। प्रतिदिन के लक्ष्य में परिवर्तन आ गया। घरेलू काम काज, खान पान एवं परिवार के लिए आत्म चिंतन के साथ कार्य करने की सोच बढ़ गई। ऐसा लगने लगा कि हमें भी प्रतिदिन कुछ न कुछ नया सीखना चाहिए। परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने को मिलने के कारण परिवार की जड़ें और मजबूत हुई हैं। लॉकडाउन ने इतना समय दिया कि हम खुल कर जी सकें, खुल कर हंस सकंे, खुल कर ढ़ेर सारी बातें कर सकें एवं आस पास जहां भी नजर दौड़ाए छोटे से बड़े सभी परिवार के सदस्य आस पास मिलते। यह जीवन का एक अनमोल तोहफा और बहुत खुशियों भरा समय रहा। कई भूले बिसरे पल पुराने यादगार पलों को सीडी द्वारा देखने को मिला।
माराथल्ली निवासी शालू शर्मा का कहना है कि लॉकडाउन की अवधि बहुत रोमांचक रही। इस दौरान घर में रहते हुए परिवार संग बहुत आनन्द लिया। प्रतिदिन पति के साथ मिलकर नई डिश बनाई। पुत्र अर्थव व पुत्री समृद्धि को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। पुत्र और पुत्री ने इस समय का सदुपयोग करते हुए काफी क्रिएशन किया। बच्चों ने बाहर का खाना नहीं खाया। कोरोना से बचने के लिए प्रतिदिन सुबह गर्म पानी का सेवन किया। फिटकरी गर्म पानी में डालकर गरारे किए। शाम को हल्दी का दूध पिया। इस दौरान आस पास रहने वाले किसी भी मित्र के घर भी नहीं गए। लॉकडाउन के दौरान बेटी समृद्धि का जन्म दिन भी सादगी से घर में मनाया। घर का बना केक ही काटा। दिन में १० बार हाथ धोए और सैनेटाइजर का उपयोग किया।
बसवेश्वरनगर निवासी सुशीला बोहरा का कहना है कि लॉकडाउन में मैंने बहुत नई बातें परिवार के साथ सीखी हैं और कुछ बाते मैंने अपने बच्चों को भी सिखाई हैं। अपने परिवार में खान पान का बदलाव देखकर बहुत खुशी हुई। जितना हो सका मैंने सभी तरह के पकवान बनाए। इससे बच्चों को बाहर के खाने की याद कभी नहीं आई। मैंने सभी को योग और प्राणायाम करना भी सिखाया। बच्चों को धर्म की महत्वाकंक्षाओं के बारे में बताया। सभी रिश्तेदारों से वीडियो कॉल के माध्यम से बातें करने का अनुभव जबरदस्त रहा। कोरोना के खतरे को लेकर अपने बड़ों के द्वारा दिए गए सुझाव भी अच्छे लगे। मुझे लगता की यह लॉकडाउन जितना कष्टकारी है उतना ही लाभदायक भी है।
ए नरयाणपुरा निवासी मंजू देवी का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान संयुक्त परिवार के साथ रहने का मौका मिला। नए-नए पकवान बनाना सीखा और लॉकडाउन को सजा के तौर पर नहीं लेते हुए एक अवसर के तौर पर लिया। लॉकडाउन का यह समय परिवार व उनके लिए यादगार बन गया। रोज कुछ नया करने का मन बनाया और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कुछ नया ही किया। राजस्थान के प्रसिद्ध कैर सांगरी की सब्जी का कई बार लुत्फ उठाया। जबकि इस सब्जी का राजस्थानी परिवार तीज त्योहार पर ही उपयोग करते हैं। साथ ही मेडिकल को भी संभाला। इस दौरान सभी को कुछ नया करने का अवसर मिला। दिन में 15 से 20 बार हाथ धोए और सैनेटाइजर व मास्क का उपयोग कर कोरोना को दूर रखा।
ईटा गार्डन निवासी रेखा छाजेड़ का कहना है कि लॉकडाउन में हमारी दिनचर्या में परिवर्तन आ गया। जहां पहले रफ्तार से जिंदगी चल रही थी, कोई फुर्सत ही नहीं थी। परिवारजन रात को 10 बजे खाना खाते थे और सोने तक बारह बज जाते थे। वहां अब शाम को 7 बजे पहले ही सबका भोजन हो जाता है और सब एक साथ मिलकर हंसी मजाक करते हैं। 10 बजे तक तो सभी सो जाते हैं। अभी हम प्रतिदिन सुबह 5 बजे उठकर योग, प्राणायाम और ध्यान करते हैं और जल्दी ही नाश्ता भी कर लेते हैं अभी मैंने कम कीमत में वाशेबल एवं आकर्षक मास्क बनाना सीखा और सिखाया और जनता के हित में कम कीमत में उपलब्ध हो इसके कार्य भी शुरू कर दिया है। वर्तमान परिस्थितियों ने हमें मानव मात्र के प्रति प्रेम भाव रखना सिखाया है।
कल्पतरू अपार्टमेंट निवासी प्रेषिता प्रियदर्शिनी आच्छा ने कहा कि लॉक डाउन ने हमें सिखा दिया कि प्रकृति बहुत ताकतवर है और हमें प्रकृति को कभी विकृत नहीं करना चाहिए। प्रकृति को जो पसंद नहीं है ऐसा व्यवहार हम नहीं करें। हमारे परिवार के सभी सदस्य सुबह जल्दी उठ रहे हैं और सामूहिक रूप से प्रभु की प्रार्थना एवं प्रेक्षा ध्यान का अभ्यास करते हैं। आजकल तो नई-नई रेसेपी सीखने और बनाने का अवसर मिल रहा है और परिवार के सभी सदस्य भी नए-नए व्यंजन का स्वाद लेकर खुश हो रहे हैं। अभी होटलों के सारे व्यर्थ खर्च बंद हो गए हैं तो सभी स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक हो गए हैं। दूर दूर के रिश्तेदारों से भी बात करके रिश्तों को मजबूत बनाने में समय का सदुपयोग कर रहे हैं।
वीवी पुरम निवासी रेखा बोहरा ने कहा कि हम जीए जा रहे थे। यह जीवन। हसीं खुशी! परंतु समय के इस पड़ाव ने, मेरे आजू बाजू के लोगों का उतार चढ़ाव उन्के जीवन की व्यथा सुनकर लगा कि हमने तो सिर्फ अपने चारों और एक लकीर बना दी और उसमें से बाहर ही नहीं आना चाहते। जब प्रधानमंत्री की बातें सुनी, जब मध्यम वर्ग के लोगों के बारे में सुना। जब श्रमिकों के परिवार में एक दिन का खाना बनाना भी मुश्किल हो गया! उस वक्त लगा कि बस अब जरूरत है मदद करने की। परमात्मा ने हमें सब कुुछ दिया है उसका सदुपयोग करने का सही वक्त है। आप हर परिवार कम से कम एक गरीब परिवार की मदद यथा शक्ति उनका सहयोग करें। मैंने और मेरे पति ने राशन वितरण की योजना बनाई और उसे अंजाम तक पहुंचाया।
फ्रेजर टाउन निवासी संतोष बाई आच्छा ने बताया कि ने हमें सही मायने में जीना सिखाया है। लॉकडाउन कुछ लोगों के लिए सजा हो सकता है लेकिन सही मायने में संयमित जीवन जीने का तरीका भी लॉकडाउन में सीखने को मिला है। इस दौरान सभी परिवारों में धर्म व ज्ञान की बयार बही है। कुछ लोगों ने योग अभ्यास तो कुछ ने साधना से कोरोना को भगाने का अचूक प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के अवधि में रोज नए प्रकार के व्यंजन बनाए। पति पदम आच्छा जो समाज सेवा के कार्य में लगे थे उनको समय से चाय नाश्ता व भोजन कराया ताकि वे पुलिस व प्रशासन के लिए की जा रही सेवा में पीछे नहीं रहें। कोरोना से बचाव के लिए जहां दिन में दर्जनों बार हाथ धोए वहीं सैनेटाइजर का इस्तेमाल किया तथा मास्क का उपयोग किया।
चामराजपेट निवासी बिंदू गादिया ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान अपार्टमेंट के बाहर स्टॉल लगाकर जरूरतमंदों को चाय व नाश्ता कराया। जैन साधवी की निश्रा में 6 से 15 वर्ष के बालक-बालकाओं ने 60 से70 सामयिक की और सच्ची निष्ठा का पालन किया। मदर्स डे को माँतरु वंदनवाली के रूप में सभी परिवारों की माताओं के चरण दूध और पानी से धोकर चावल से बंधाकर दीपक लेकर आरती की। चामराजपेट पुलिस स्टेशन के अधिकारियों व जवानों तथा बीबीएमपी के सभी कार्यकर्ताओं को चाय-पानी जूस व छाछ की सेवा कर वीर सैनिकों की रक्षा सुरक्षा और देश भक्ति का संदेश दिया। हम सब मणिधारी परिवारों ने मिलजुलकर एक दूसरे की सुरक्षा व स्वस्थ जीवन की कामना कर सभी भारत वासियों के लिए दिल से दुआ की। सभी ने प्रार्थना की कि निरोग रहे मेरा हिन्दुस्तान।
चिकपेट निवासी सुगणी देवी घांची ने बताया की लॉकडाउन होने पर एक बार तो हम सब घबरा गए कि आगे क्या होगा?, दो चार दिन ऐसे ही चिंता मे गुजर गए, फिर एक दिन छत पर कबूतर को देखा और सोचा की वह बोल नहीं सकता और भूखा प्यासा होगा, तो हमने दाना डाला और मटके मैं पानी रखा और वो खाकर उड़ गया, इससे यह ज्ञान मिला की पशु पक्षियों की जरूरत पूरी हो जाती है तो हम तो इंसान हैं। हमारी परेशानियां भी जरूर दूर होगी। फिर जब रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों को पूरे परिवार सहित देखा और इनसे हमने धर्म का महत्व जाना। फिर बेटिया सहित अन्या प्रकार के व्यंजन सीखे, मिष्ठान बनाए। लॉकडाउन में धन को छोड़ संतोष धन की तरफ रुख किया और कबूतर की भांति आराम से रहना और मुसीबत में हंसना सीखा।

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