पंडित देवकीनन्दन ने कहा कि रामायण में लिखा है कि ‘अल्पकाल विद्या सब पाई’ अर्थात भगवान राम ने बाल्य अवस्था में अल्प समय में ही सारी विद्याएं ग्रहण कर लीं थीं। भगवान अपने गुरु के यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए गए, गुरु भगवान के महल में पढ़ाने के लिए नहीं आए। संस्कारी और असंस्कारी में बड़ा अंतर है।
जब कोई अपने से बड़ों के सामने ऊंची आवाज में बोलने लगे तो किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आप संस्कार विहीन हैं। इंसान के गुणों से पता चलता है कि वह कितना संस्कारी है।
दूसरों को तो सब बोलते हैं, लेकिन खुद क्या करते हैं कोई यह क्यों नहीं देखता। हमेशा दूसरों की बुराई ही नहीं करना चाहिए, दूसरों से कुछ सीखना भी चाहिए। बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण हैं।
ध्यान दें कि भगवान राम राजकुमार हैं और विश्व में कौन सा ऐसा शिक्षक है जिसे भगवान अपने महल में नहीं बुला सकते। दशरथ की हैसियत के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन फिर भी गुरु के यहां राम पढऩे के लिए गए।
आज बच्चों को पढ़ाने के लिए ट्यूशन टीचर घर पर आते हैं। हमारी संस्कृति है कि हम टीचर के यहां जाएं ना कि वह हमारे यहां आएं। राम ने बताया कि कैसा जीवन जीना चाहिए। अगर तुमने ज्यादा पैसा कमा लिया है तो अपने आपको ज्यादा बुद्धिजीवी मत समझो।
जो राम को मनाने की हिम्मत कर सके, राम को मना सके, उससे ज्यादा चतुर कोई नहीं। उससे बड़ा बुद्दिजीवी कोई नहीं।