व्यक्ति अपनी सोच में जी रहा है
धर्मसभा में बोले आचार्य चन्द्रयश सूरीश्वर
व्यक्ति अपनी सोच में जी रहा है
बेंगलूरु. सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में उपधान तप आराधना में सोमवार को आचार्य चंद्रयश सूरीश्वर ने धर्मसभा को सम्बोधित करते कहा वर्तमान में व्यक्ति अपनी सोच में जी रहा है। परहित की बात तो भूल ही गया है फलत: जीवन से उदारता व सहृदयता का गुण खोता जा रहा है। जीवन में छोटी इकाई में ही रहना अधिक पसंद कर रहा है। उसकी छोटी दुनिया में पत्नी बच्चे से अधिक किसी को भी स्थान नहीं है। एक युग था जहां पर संयुक्त परिवार होता था। बच्चे दादा दादी की गोद में रहते थे, खेलते थे जिससे दादा दादी का समय भी कट जाता था और बच्चों को भरपूर स्नेह दुलार के साथ संस्कार प्राप्त होते थे। परन्तु आज तो हम दो और हमारे दो को ही परिवार माना जा रहा है। हजारों वर्षों से भारतीय परंपरा संयुक्त परिवार की पोषक रही है। ऐसे परिवार भी थे जिनके एक रसोई घर में एक सो सदस्यों का भोजन तैयार होता था। संयुक्त परिवार में रहने का आनंद ही एक अलग होता था। वर्तमान में व्यक्ति को व्यक्तिगत सोच ने दुष्प्रभावित कर रखा है। व्यक्ति महत्वकांक्षी और अहंकारी बनता जा रहा है। बड़ों के प्रति सन्मान की भावना उसमें कमजोर पड़ती जा रही है। परिवार में बुजुर्गो की अपनी महत्ता हैं चाहे वे शक्तिहीनता की स्थिति में कोई कार्य नहीं कर पा रहे हो लेकिन उनकी छाया सदैव परिवार को शांति समाधान व संतोष देती है। युग बदले परन्तु व्यक्ति को विचार संस्कार और आचार नहीं बदलने चाहिए। विभक्त परिवार ज्यादा दिन नहीं टिकता संयुक्त परिवार में ही सुख समृद्धि टिकती है।
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