जीवन को सार्थक करने की चेतावनी है दसवें अध्याय में
विल्सन गार्डन में धर्मसभा
जीवन को सार्थक करने की चेतावनी है दसवें अध्याय में
बेंगलूरु. साध्वी प्रतिभाश्री ने उत्तराध्ययन सूत्र का स्वाध्याय और विवेचन करते हुए कहा कि द्रुमपत्रक नामक दसवां अध्ययन मनुष्य जीवन की चंचलता, असारता और क्षणभंगुरता का उच्च ललित साहित्यिक भाषा में निदर्शन देता है। जीवन के क्षण-क्षण को सार्थक करने की चेतावनी इसमें है। अप्रमाद का यह महान संदेश इस एक अध्ययन में समय गोयम! मा पमायए! जीवन की नश्वरता जैसे कुश के अग्रभाग पर टिकी हुई ओस की बूंद, बहुत थोड़ी देर तक ठहरती है। वैसे ही मनुष्य का जीवन है। सम्यक निदर्शन इस बहुश्रुतपूज्य नामक ग्यारहवें अध्ययन में किया गया है। बारहवें अध्ययन में हरिकेश मुनि का परिचय और यज्ञपाटक में भिक्षार्थ गमन का बहुत सुंदर विवरण प्रस्तुत किया गया है। तेरहवें अध्ययन में चित्त और संभूत नामक दो भाइयों के जन्म-जन्मांतरओं की घटनाओं के प्रकाश में यह अध्ययन भोग एवं योग की मनोवृतियों का चित्र उपस्थित करता है। विरक्ति के संस्कार जहां मानव को सर्वतंत्र स्वतंत्र विचारणा की सामथ्र्य देते हैं,वहां भोगासक्ति के संस्कार उसे दलदल में फंसे गजराज की तरह असमर्थ एवं असहाय बना देते हैं।
हमें सम्यक को टिकाना है
मैसूरु. स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में स्थानक भवन में चातुर्मास कर रही साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि हमें हमारे सम्यक को टिकाना है। धर्म पर श्रद्धा श्रेष्ठ है, लेकिन अंध श्रद्धा खतरनाक होती है। हमें श्रद्धा प्रभु पर करनी है पुदगलों पर नहीं। पुदगल तो नष्ट होने वाले हंै श्रद्धा साथ बनी रहेगी। हमें हमारे समयकत्व पूर्ण श्रद्धा रखनी है। आज की सभा का संचालन सचिव सुभाषचंद धोका ने किया।
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