जहां महिलाओं ने सिर पर कलश धर कर आचार्य का सामैया कर परिक्रमा लगाते हुए मंगलगीत गाए। मांगलिक श्रवण के बाद ध्वजा लेकर सुविधीनाथ जिनालय पहुंच कर ध्वजारोहण किया गया। आचार्य ने कहा कि मंदिरों के शिखर से भी ऊपर फहराई जानेवाली ध्वजा हमें अपने जीवन को उन्नत बनाने की एक प्रेरणा देती है।
सुमतिनाथ जैन श्वेतांबर मूर्ति पूजक संघ के अध्यक्ष अशोक दांतेवाडिय़़ा, ट्रस्टी हंसराज पगारिया, बाबूलाल मुणोत, महावीर गादिया, कांतिलाल पटवारी, विमल भेसवाड़ा, डायालाल वोहरा, अरविन्द भंडारी, उगमराज हरण, विक्रम हरण आदि उपस्थित रहे। वहीं, महावीर भवन में आचार्य मुक्ति सागरसूरी ने कहा कि आदमी अपनी जिंदगी उस तुच्छ धन वैभव के पीछे लगा देता है जिसे अंत में छोड़कर ही जाना होता है।
उन्होंने कहा कि यह पैसा या अर्थ जीवन को समर्थ भी बना सकता है और व्यर्थ भी गवां सकता है। मगर यह हम पर निर्भर होता है, अर्थ के अर्थ को सही मायने में समझ लें।