सूत्रों के अनुसार कई मामलों को लेकर पिछले दिनों कुमारस्वामी और देवगौड़ा के विचारों में टकराव की स्थिति बनती दिखी है। इस कारण कई बार पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। अभी तक होता यह रहा है कि कोई भी अहम फैसला लेने से पहले देवगौड़ा का सुझाव लेना अनिवार्य होता था। लेकिन पिछले दिनों कई मामलों में उनकी राय कुमारस्वामी और उनके समर्थकों की राय से उलट निकली।
बताया जाता है कि भूमि सुधार कानून और विधान परिषद में सभापति केखिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के मामले में पार्टी असमंजस में थी। कुमारस्वामी ने जो फैसले लिए, देवगौड़ा ने उनसे अलग मंशा जताई। पार्टी के कुछ विधायकों ने भूमि सुधार कानूनों के खिलाफ धरना दिया। जबकि विधान परिषद में पार्टी के सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया।
देवगौड़ा ने गोहत्या निषेध कानून भी गोहत्या निषेध कानून का विरोध किया। विधान मंडल के दोनों सदनों में पार्टी का रवैय्या अंदर और बाहर भिन्न रहा। विधान परिषद के सदस्य बसवराज होरट्टी का मानना है कि देवगौड़ा अब कोई भी नातिगत मामले या फैसला लेने मेें हस्तक्षेप नहींं करेंगे। अब कुमारस्वामी ही सब फैसले और रणनीति तय करेंगे।