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बैंगलोर

एक महीने में ग्रहणों की तिकड़ी

5 जून को चंद्रमा के उपछाया का ग्रहण21 जून को सूर्य का अनूठा वलयाकार ग्रहण

बैंगलोरMay 31, 2020 / 08:02 pm

Rajeev Mishra

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बेंगलूरु.
अगले महीने जून और जुलाई के बीच एक के बाद एक तीन ग्रहण होने जा रहे हैं। एक के बाद एक दो ग्रहण तो अक्सर हुआ करते हैं लेकिन, ग्रहणों की तिकड़ी असामान्य है।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि आगामी ग्रहणों में पहला चंद्रमा का ग्रहण है। यह उपछाया का ग्रहण है और 5 और 6 जून की रात को लगेगा। इसके बाद 21 जून को सूर्य का वलय ग्रहण है। यही दिन ग्रीष्म अयनांत का भी है जिसके बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। तीसरा ग्रहण भी चंद्रमा का उपछाया का ग्रहण है जो कि 5 जुलाई की पूनम की रात को होगा।
दस फीसदी कम होगी चांद की चमक
इनमें पहले ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी की छाया के बाहरी हिस्से अर्थात उपछाया में प्रवेश करेगा। उपछाया के पूर्ण ग्रहण में चंद्रमा की चमक केवल 10 फीसदी कम हो जाती है। आंख से देखने पर इस ग्रहण का आभास नहीं हो पाता। यह ग्रहण यूरोप के अधिकांश हिस्से, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, हिंद महासागर में दिखाई देगा। ग्रहण रात को 11 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगा और मध्य रात्रि के बाद 2.34 बजे खत्म होगा। अधिकतम ग्रहण के समय उपछाया का परिमाण 0.57 होगा। अर्थात इतना ही हिस्सा उपछाया में से गुजरेगा।
सूर्यास्त जैसा होगा नजारा
26 दिसम्बर 2019 के वलयाकार ग्रहण के बाद एक बार फिर से सूर्य का वलय ग्रहण होने जा रहा है। यह 21 जून को होगा। वलय ग्रहण होने के कारण है कि चंद्रमा पृथ्वी से इतना दूर हो जाता है कि ग्रहण के समय वह सूर्य के गोले को पूरा ढंग नहीं पाता। इसमें सूर्य का बाहरी चमकता हिस्सा एक चमकीली मुद्रिका के रूप में नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे सूर्य में एक बहुत बड़ा छेद कर दिया गया हो। पूर्ण सूर्यग्रहण के समान परिवेश में इतना अंधेरा नहीं होता लेकिन सूर्यास्त जैसा नजारा होता है। वलय ग्रहण के समय सूर्य का कोरोना नहीं देखा जा सकता क्योंकि, सूर्य का चमकीला वलय इतना चमकीला होता है कि उसमें कोरोना की चमक डूब जाती है।
यह है ग्रहण का पथ
इस ग्रहण का पथ अफ्रीका के भीतरी भाग से शुरू होता है। सउदी अरब और भारत के उत्तरी हिस्सो से होता हुआ मानसरोवर के ऊपर से गुजरकर चीन के दक्षिणी भाग से निकलता है और प्रशांत महासागर में खत्म हो जाता है। यह ग्रहण पूर्वी अफ्रीका मध्य-पूर्व और दक्षिणी एशिया में आंशिक रहेगा। भारत में वलय ग्रहण का पथ राजस्थान, हरियाणा, पंजाब हरियाणा का सीमा क्षेत्र और उत्तराखंड से होकर गुजरेगा। इस पथ की चौड़ाई 21.6 किमी है।
इन शहरों में नजर आएगा सूर्य का वलय
भारत के वे प्रमुख शहर जिनके ऊपर से वलय ग्रहण की छाया गुजरती है और उनके नाम हैं घरसाणा, सूरतगढ़, सिरसा, शरदूलगढ़, कुरुक्षेत्र, युमनानगर, देहरादून, नई टिहरी, चमोली, जोशीमठ और नंदा देवी। कुरुक्षेत्र के लिए इस ग्रहण की महत्ता है। यद्यपि कुरुक्षेत्र पर हर साल कोई ना कोई सूर्यग्रहण आता ही है लेकिन, वे सभी आंशिक होते हैं। आखिरी वलय ग्रहण जो कुरुक्षेत्र से देखा जा सका वह 21 अगस्त 1933 को हुआ था। 87 वर्ष के बाद कुरुक्षेत्र एक बार फिर वलय ग्रहण का गवाह बनेगा।
36 सेकेंड का होगा अद्भूत नजारा
यह ग्रहण भरी दोपहर का है और मध्य आकाश में जब सूर्य वलयाकार रूप में चमकेगा तो यह स्थिति केवल 36.4 सेकेंड के लिए रहेगी। वे अन्य स्थल जिनपर वलयाकार ग्रहण की छाया गुजरेगी लगभग इतनी ही अवधि का वलय रूप देख पाएंगे। शेष भारत सूर्य ग्रहण आंशिक रहेगा। प्रोफेसर कपूर ने कहा कि वलय ग्रहण या सूर्य के आंशिक ग्रहण आंखों के लिए सुरक्षित नहीं है। ना ही ग्रहण की स्थिति को दूरबीन से देखा जाना चाहिए और ग्रहण देखने को लिए सही फिल्टर का चुनाव करें। अन्यथा प्रक्षेपण विधि से ग्रहण के बिम्ब का नजारा किया जा सकता है। तिकड़ी का आखिरी ग्रहण 5 जुलाई को है लेकिन यह भारत से नहीं देखा जाएगा।

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