उन्होंने कहा कि दिनभर झूठ-फरेब में उलझे रहने के बाद शाम को मंदिर में जाकर, उसकी ड्योढ़ी पर मत्था टेककर माफी मांग लेते हैं और संतुष्ट हो जाते हैं। ऐसी आस्तिकता का क्या अर्थ कि हम ईश्वर की पूजा करें, लेकिन कर्म उनकी इच्छा के बिल्कुल विपरीत करें। सच्ची भक्ति की अवस्था वह है, जहां हमारा प्रत्येक कार्य भगवान की पूजा बन जाता है।
जब व्यक्ति का हर कर्म पूजा बन जाता है तब उसके लिए मंदिर और प्रयोगशाला में भेद नहीं रह जाता। मन निर्मल नहीं है तो वहां परमात्मा का वास नहीं हो सकता। कबीर कहते हैं, जिसका मन निर्मल है, उसके लिए सभी स्थान बनारस की पावन भूमि की तरह पवित्र है।
उसके लिए सभी जल गंगा की तरह निर्मल है। अगर आपका मन निर्मल है तो फिर आपको तीरथ यात्रा करने, गंगा में डुबकी लगाने या फिर मंदिर जाकर प्रभु को ढूंढऩे की जरूरत नहीं है। अगर आपका मन निर्मल नहीं है और आप मन को निर्मल बनाना छोडक़र केवल तीर्थ यात्रा करते रहेंगे, गंगा में डुबकी लगाते रहेंगे, मंदिरों में जाकर महावीर को ढूंढ़ते रहेंगे तो फिर उसका कुछ लाभ नहीं होगा।