एनजीटी के इस फैसले से गांव वालों को बड़ी राहत मिली है, जो शुरू से ही परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उडुपी पावर कारपोरेशन लिमिटेड के कारण सभी प्रकार के जीवों के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव और घटती कृषि उपज को लेकर क्षेत्र के निवासी वर्षों से शिकायत करते आ रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अडाणी की परियोजना से पर्यावरण को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है और इसका प्रतिकूल प्रभाव आम लोगों, पशु-पक्षियों और कृषि योग्य भूमि पर पड़ रहा है। पॉवर प्लांट विस्तारीकरण के लिए पर्यावरण मंजूरी खारिज करने के अलावा, एनजीटी द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति के निष्कर्षों पर संज्ञान लेते हुए, एनजीटी ने अडाणी को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 20 के तहत प्रदूषकों के भुगतान सिद्धांत के अनुसार 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
कंपनी को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक महीने के भीतर अंतरिम पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में जुर्माना राशि का भुगतान करना होगा। इसके अलावा, मामले में याचिकाकर्ता को अडाणी द्वारा 1 लाख रुपए का भुगतान किया जाना है। एनजीटी ने अपने निष्कर्षों में पाया कि वर्तमान संयंत्र के विस्तार के लिए अप्रैल 2002 में दी गई पर्यावरणीय मंजूरी अवैध थी और परियोजना प्रस्तावक के अनुरोध पर इसे संदिग्ध परिस्थितियों में दिया गया था। आदेश के अगले हिस्से में एक समिति गठन का आदेश दिया, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक, आइआइटी चेन्नई के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि और आइआइटी बेंगलूरु के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल होंगे।
यह समिति राख के हवा में उडऩे से होने वाले पर्यावरण का नुकसान, राख के अनियंत्रित फैलाव, परिवेशी वायु गुणवत्ता सहित क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी को होने वाले गंभीर नुकसान का आकलन करेगी। समिति तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
गौरतलब है कि प्रोफेसर टीवी रामचंद्र के नेतृत्व में छह वैज्ञानिकों की एक टीम ने वर्ष 2012 की रिपोर्ट में कहा था कि इस संयंत्र के परिचालन में पर्यावरण प्रबंधन की अनदेखी की गई, जिससे बायोटिक तत्वों को नुकसान होने के अतिरिक्त, पानी (सतह और भूमिगत), मिट्टी और हवा के दूषित होने के स्पष्ट संकेत हैं।