87 साल बाद कुरुक्षेत्र में दिखेगा विलक्षण सूर्यग्रहण
21 जून 2020 को होगा फिर जीवंत होगा सूर्य का वलय रूपउत्तर-पश्चिमी राजस्थान में दिखेगा अद्भूत नजारा
87 साल बाद कुरुक्षेत्र में विलक्षण सूर्यग्रहण
बेंगलूरु.
भारतीय इतिहास में अहम स्थान रखने वाले कुरुक्षेत्र में 87 साल बाद एक अनूठा सूर्यग्रहण लगेगा। यह वलयाकार सूर्यग्रहण होगा। कुरुक्षेत्र में इससे पहले 1933 में वलयाकार सूर्यग्रहण की घटना हुई थी।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि आगामी 21 जून को सूर्य का वलयाकार ग्रहण होने जा रहा है। पिछले 15 जनवरी 2010 के वलयाकार सूर्यग्रहण के बाद भारत में 26 दिसम्बर 2019 को वलयाकार ग्रहण हुआ था और देश के दक्षिणी भागों में देखा गया। अब 21 जून के ग्रहण में 26 दिसम्बर 2019 के मुकाबले महीन वलय का नजारा किया जा सकेगा।
वलयाकार ग्रण पट्टी में सूरतगढ़
उन्होंने बताया कि 21 जून का आंशिक ग्रहण दक्षिण पूर्व यूरोप, अधिकांश एशिया, ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी भाग, अधिकांश अफ्रीका प्रशांत और हिंद महासागर से दिखाई देगा। समूचे भारत में यह ग्रहण आंशिक है। किंतु एक पट्टी विशेष में वलयाकार ग्रहण नजर आएगा। इस विशेष पट्टी में आने वाले स्थान हैं दक्षिणी पाकिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड। कुछ विशेष स्थल हैं घड़साना, सूरतगढ़, एलेना बाग, सिरसा, सरदारगढ़, टोहाना, तिहोवा, कुरुक्षेत्र, लाडवा, यमुनानगर, देहरादून, नई टिहरी, अगस्तमुनी, जोशीमठ और मानसरोवर। मानसरोवर से इसका नजारा अदभूत होगा। कुरुक्षेत्र में आंशिक ग्रहण तो होते हैं किंतु आखिरी बार यहां वलयाकार ग्रहण 21 अगस्त 1933 के दिन हुआ था। 87 वर्ष के बाद एक बार फिर कुरुक्षेत्र सूर्य का वलयाकार ग्रहण होने जा रहा है। वलय की स्थिति इस बार लगभग आधे मिनट की ही है। फिर भी इसके लिए वैज्ञानिक और खगोल प्रेमी हजारों किमी की यात्रा करते हैं।
इसलिए होता है वलयाकार ग्रहण
प्रोफेसर कपूर ने बताया कि चंद्रमा पृथ्वी का और पृथ्वी सूर्य का परिभ्रमण करती है। सूर्य का ग्रहण चंद्रमा के पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाने से होता है। चंद्रमा का ग्रहण, इसकी पृथ्वी की छाया में आ जाने से होता है। चूंकि, चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 5 डिग्री से थोड़ा अधिक झुकाव पर है इसलिए हर अमावस्या पर सूर्य का और हर पूर्णिमा पर चंद्रमा का ग्रहण नहीं होता। यद्यपि, सूर्य और चंद्रमा का कोणीय आकार लगभग एक समान है (चूंकि, पृथ्वी और चंद्रमा दोनों की कक्षाएं दीर्घ वृत्ताकार है) इसलिए आकाश में सूर्य और चंद्रमा दोनों के कोणीय आकार में थोड़ी कमी-बेसी होती है। ये इतनी कम है कि हम अपनी आंख से महससू नहीं कर सकते। जब चंद्रमा का आकार सूर्य के आकार के सापेक्ष थोड़ा सा भी अधिक होता है तो उस स्थिति में सूर्य का ग्रहण पूर्ण होता है। आगामी 21 जून के दिन ग्रहण तो होगा किंतु चंद्रमा आकार में सूर्य के मुकाबले थोड़ छोटा पड़ जाएगा और एक-रेखण की स्थिति में उसे पूरा ढंक नहीं पाएगा। यही वलयाकार ग्रहण है। जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि चमकते सूर्य के मध्य में एक बड़ा काला सूराख हो गया हो। यह स्थिति एक पथ विशेष से ही दिखाई देती है। इस पथ से बाहर सूर्य ग्रहण आंशिक रूप से नजर आता है। सूर्य ग्रहण को कोरी आंखों से ना देखें। किसी कैमरे या दूरबीन के जरिए भी ना देखें अन्यथा आंखों को नुकासान हो सकता है। आंशिक और वलयाकार ग्रहण को देखने के लिए विशेष फिल्टर आवश्यक है।
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